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________________ तीसरा प्रकाश १८१ करने में समय है ही। वह इस प्रकार से रसोईशाला प्रावि में धूम पौर अग्नि को सबसे पहले देखा, यह एक प्रत्यक्ष मा। इसके पाव भनेकों बार और कई प्रत्यक्ष हुये; पर वे सब प्रत्यक्ष व्यापि को विषय करने में समर्थ नहीं हैं। लेकिन पहले पहले के अनुभव किये धूम और अग्नि का स्मरण तथा तरसजातीय के अनुसन्धानरूप 5 प्रत्यभिज्ञान से सहित होकर कोई प्रत्यक्ष-विशेष सर्वदेशकाल को भी लेकर होने वाली गिने ग्रह कार अम।। है । और यदि स्मरण तथा प्रत्यभिज्ञान से सहित प्रत्यक्ष-विशेष हो जब व्याप्ति को विषय करने में समर्थ है, तब तर्क नामके पृथक् प्रमाण के मानने की क्या प्रावश्यकता है ? 10 समाधान—ऐसा कथन उनकी न्याय-मार्ग की अनभिमता को प्रकट करता है। क्योंकि 'हजार सहकारियों के मिल आने पर भी मविषय में प्रवृत्ति नहीं हो सकती है' यह हम पहले कह पाये हैं । इस कारण प्रत्यक्ष के द्वारा व्याप्ति का ग्रहण बतलाना सङ्गत नहीं है। किन्तु यह सङ्गत प्रतीत होता है कि स्मरण, प्रत्यभिमान 15 और अनेकों बार का हुमा प्रत्यक्ष ये तीनों मिस कर एक वैसे शाम को उत्पन्न करते हैं जो व्याप्ति के प्रहण करने में समर्थ है और वही तर्क है। अनुमान प्रादि के द्वारा तो व्याप्ति का ग्रहण होमा सम्भव ही नहीं है। तात्पर्य यह कि अनुमान से यदि व्याप्ति का ग्रहण माना जाय तो यहाँ दो विकल्प उठते हैं—जिस अनुमान को 20 व्याप्ति का ग्रहण करना है उसो अनुमान से व्याप्ति का प्रहण होता है या अन्य दूसरे अनुमान से ? पहले विकल्प में अन्योन्याश्रय रोष प्राता है, क्योंकि व्याप्ति का ज्ञान जब हो जाय, तब अनुमान अपना स्वरूप लाभ करे और अनुमान जब स्वरूप लाभ कर ले, तब व्याप्सिका शान हो, इस तरह दोनों परस्परापेश हैं। अन्य दूसरे अमाम से 25
SR No.090311
Book TitleNyayadipika
Original Sutra AuthorDharmbhushan Yati
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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