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तीसरा प्रकाश
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आत्मा में उस प्रकार का संस्कार पैदा करती है, जिससे वह कालाम्सर में भी उस अनुभूत विषय का स्मरण करा देती है । इसलिये धारणाके विषय में उत्पन्न हुआ 'वह' शब्द से उल्लिखित होने वाला यह ज्ञान स्मृति है, यह सिद्ध होता है ।
शङ्का – यदि धारणा के द्वारा प्रहण किये उत्पन्न होता है तो गृहीतग्राही होने से उसके आता है ?
विषय में हो स्मरण 5 प्रप्रमाणता का प्रसङ्ग
समाधान --- नहीं: ईहा श्रादिक की तरह हमरणमें भी विषयभेव मौजूद है। जिस प्रकार भवग्रहादिक के द्वारा ग्रहण किये हुए अयं को विषय करने वाले ईहादिक ज्ञानों में विषयभेव होने से अपने विषय सम्बन्धी 10 संशयाविरूप समाशेष को दूर करने के कारण प्रमाणता है उसी प्रकार
विषय में प्रवृत्त होने
स्मरण में भी धारणा के द्वारा ग्रहण किये गये पर भी प्रमाणता ही है। कारण, धारणा का विषय हदन्ता से मुक्स अर्थात् 'यह' है- 'यह' शब्द के प्रयोग पूर्वक उल्लिखित होता है और स्मरण का तसा से युक्त अर्थात् 'वह' है-'वह' शस्त्र के द्वारा निविष्ट 15 होता है। तात्पर्य यह है कि शरणा का विषय तो वर्तमान कालीन है और स्मरण का विषय भूतकालीन है। अतः स्मरण अपने विषय में उत्पन्न हुये अस्मरण प्रावि समारोपको दूर करने के कारण प्रमाण ही है-अप्रमाण नहीं। प्रमेयकमलमार्तण्ड में भी कहा है- "विस्मरण, संशय और विपर्ययरूप समारोप है और उस समारोप को दूर करने 20 से यह स्मृति प्रमाण है ।"
'स्मरण अनुभूत विषय में प्रवृत्त होता है' इतने से यदि वह प्रमाण हो तो धनुमान से आती हुई अग्नि को जानने के लिये पीछे प्रवृत हुआ प्रत्यक्ष भी श्रप्रमाण ठहरेगा । अतः स्मरण किसी भी प्रकार प्रमाण सिद्ध नहीं होता ।
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