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________________ ૭૪ न्याय -दीपिका रूप वस्तु प्रमाणका विषय है।" अतः अविशद ( अस्पष्ट ) प्रतिभास को जो परोक्ष का लक्षण कहा है वह बिल्कुल ठीक है । परोक्ष प्रमाण के भेद और उनमें ज्ञानान्तर की सापेक्षता का कथन - 5 उस परोक्ष प्रमाण के पांच भेद हैं-१ स्मृति, २ प्रत्यभिज्ञान ३ सर्क, ४ अनुमान और ५ प्रागम। ये पाँचों ही परोक्ष प्रमाण नामान्तर की अपेक्षा से उत्पन्न होते हैं । स्मरण में पूत्रं अनुभव की अपेक्षा होती है, प्रत्यभिज्ञान में स्मरण और अनुभव की, तर्क में अनुभव, स्वरण और प्रत्यभिज्ञानको अनुमान में लिङ्गदर्शन, 10 व्याप्ति स्मरण आदि को और प्रागम में शब्दश्रवण, सङ्केतग्रहण ( इस शब्द का यह है, इस प्रकार के संकेत के ग्रहण) आदि की अपेक्षा होती है। किन्तु प्रत्यक्ष प्रमाण में ज्ञानान्तर की अपेक्षा नहीं होती, वह स्वतन्त्र रूप से -- शामान्तर निरपेक्ष ही उत्पन्न होता है । स्मरण आणि की यह शानस्तरापेक्षा उनके अपने अपने निरूपण के 15 समय बतलायी जायसे । प्रथमतः उद्दिष्ट स्मृति का निरूपण स्मृति किसे कहते हैं ? 'वह' इस प्रकार से उल्लिखित होने वाले और पहले अनुभव किये हुये पदार्थ को विषय करने वाले ज्ञान को स्मृति कहते हैं जैसे 'वह देवदत्त' । यहाँ पहले अनुभव किया हुआ 20 ही देवदत्त 'वह' शब्द के द्वारा जाना जाता है । इसलिये यह ज्ञान 'वह' शब्द से उल्लिखित होने वाला और अनुभूत पदार्थ को विषय करने वाला है। जिसका अनुभव नहीं किया उसमें यह ज्ञान नहीं होता। इस ज्ञान का जनक अनुभव हैं और वह अनुभव धारणारूप ही कारण होता है; क्योंकि पदार्थ में अवग्रहादिक ज्ञान हो जाने पर भी 25 धारणा के प्रभाव में स्मृति उत्पन्न नहीं होती । कारण, वारणा
SR No.090311
Book TitleNyayadipika
Original Sutra AuthorDharmbhushan Yati
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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