SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 289
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૬× न्याय-दीपिका केवल एक मन है । इन दोनों के निमित से होनेवाला यह अवग्रहाविरूप ज्ञान लोकव्यवहार में 'प्रत्यक्ष' प्रसिद्ध है। इसलिये यह सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहा जाता है। परीक्षामुख में भी कहा है- "इन्द्रिय और मन के निमिरा से होने वाले एक देश स्पष्ट ज्ञान 5 को सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहते हैं।" श्रौर यह सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष मुख्य प्रत्यक्ष है— गौण रूपसे प्रत्यक्ष है, क्योंकि उपचार से सिद्ध होता है। वास्तव में हो नही है। विज्ञान है शरण मतिज्ञान परोक्ष है । शङ्का - मतिज्ञान परोक्ष कैसे है ? समाधान -"प्रयं परोक्षम्" [ त० सू० १ - ११ ] ऐसा सूत्र -मागम का वखन है। सूत्र का अर्थ यह है कि प्रथम के दो शान -मतिज्ञान और श्रुतज्ञान परोक्ष प्रमाण हैं । यहाँ सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष को जो उपचार से प्रत्यक्ष कहा गया है उस उपचार में निमित 'एकवेश स्पष्टता' है । अर्थात् इन्द्रिय और अनिन्द्रियजन्य शरद 15 कुछ स्पष्ट होता है, इसलिये उसे प्रत्यक्ष कहा गया है। इस सम्बन्ध में और अधिक विस्तार की अवश्यकता नहीं है । इतना विवेचन पर्याप्त है । पारमार्थिक प्रत्यक्ष का लक्षण और उसके भेदों का कथन 10 - सम्पूर्णरूप से स्पष्ट ज्ञान को पारमार्थिक प्रत्यक्ष कहते हैं । जो 20 ज्ञान समस्त प्रकार से निर्मल है वह पारमार्थिक प्रत्यक्ष है । उसी को मुख्य प्रत्यक्ष कहते हैं । उसके दो भेद हैं- एक सकल प्रत्यक्ष और दूसरा विकल प्रत्यक्ष उनमें से कुछ पदार्थों को विषय करने वाला ज्ञान विकल पारमार्थिक है। उसके भी दो भेद हैं-१ प्रवधिज्ञान और २ 25 मन:पर्ययज्ञान । अवधिज्ञानावरण और वीर्यान्तरायकर्म के क्षयोप
SR No.090311
Book TitleNyayadipika
Original Sutra AuthorDharmbhushan Yati
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy