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________________ दुसरा प्रकाश भाषा, भेष और भूषा आदि के विशेष को जानकर मथार्थता का निश्चय करना अवाय है । जैसे 'यह दक्षिणी ही है। अत्राय से निश्चित किये गये पदार्थ को कालान्तर में न भूलने की शक्ति से उसी का ज्ञान होना धारणा है । जिससे भविष्य में भो 'वह इस प्रकार का स्मरण होता है । तात्पर्य यह कि 5 पदार्थका निश्चय होने के बाद जो उसको न भूलने रूप से संस्कार ( वासना ) स्थिर हो जाता है और जो स्मरण का अनक होता है वही धारणाजान हैं। प्रतएव धारणा का दूसरा नाम संस्कार भी है। शङ्का-ये ईहादिक ज्ञान पहले पहले ज्ञान से ग्रहण किये 10 ये पदार्थ को ही ग्रहण करते हैं, अतः धारावाहिक ज्ञान की तरह अप्रमाण है ? समाधान नहीं; भिन्न विषय होने से प्रगृहीताग्राही हैं। प्रात -पूर्व में ग्रहण नहीं किये हुये विषय को हो ग्रहण करते हैं । यथाओ पदार्थ प्रवाह शान का विषय है वह ईहा का नहीं है । और जो 15 ईहा का है यह अवाय का नहीं है । तथा जो अवाय का है यह धारणा का नहीं है। इस तरह इनका विषयभेद बिल्कुल स्पष्ट है और उसे बुद्धिमान अच्छी तरह जान सकते हैं। ये प्रवग्रहादि चारों ज्ञान जम इन्द्रियों के द्वारा उत्पन्न होते हैं तब इनित्यप्रत्यक्ष कहे जाते हैं। और जब मनिन्द्रिपान के द्वारा 20 पैदा होते हैं तब प्रनिन्त्रियप्रत्यक्ष कहे जाते हैं । इम्तियां पांच हैं-१ स्पर्शन, २ रसना, ३ नाण, ४ चक्षु, और ५ श्रोत्र । अमिन्द्रिय १ 'स्मृति हेतुधारणा, संस्कार इति यावत्-लधी स्वोपविष का०६। वैशेषिकदर्शन में इसे धारणाको) भावना नामका संस्कार कहा है और उसे स्मृतिजनक माना है।
SR No.090311
Book TitleNyayadipika
Original Sutra AuthorDharmbhushan Yati
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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