________________
प्रत्यक्ष के दो भेद करके सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष का लक्षण और उसके भेदों का निरूपण
वह प्रत्यक्ष दो प्रकार का है-१ सौम्यवहारिक और २ पारमाथिक । एकदेश स्पष्ट ज्ञान को सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहते हैं । 5 तात्पर्य यह कि भो ज्ञान कुछ निर्मल है वह सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष
है। उसके घार भेद हैं-१ अवग्रह, २ ईहा, ३ मयाय मौर ४ धारणा । इन्द्रिय और पदार्थ के सम्बन्ध होने के बाव उत्पन्न हुए सामान्य अवभास (दर्शन) के अनन्तर होने वाले और अवान्तरससा
जाति से युक्त वस्तु को ग्रहण करने वाले ज्ञानविशेष को अवग्रह 10 कहते हैं। अंसे 'पह पुरुष है। यह जान संशय नहीं है, क्योंकि
विषयान्तर का निराकरण करके अपने विषय का ही निश्चय कराता है। और संशय उससे विपरीत लक्षण बाला है। जैसा कि रणवार्तिक में कहा है-"संशय नानाविषयक, अनिश्चयात्मक और
मन्य का प्रव्यवच्छेदक होता है। किन्तु प्रवाह एकार्थविषयक, 15 निश्चयात्मक मोर अपने विषय से भिन्न विषय का व्यवच्छेदक होता
है।" राजवात्तिकभाष्य में भी कहा है-"संशय निर्णय का विरोधी है, परन्तु अवाह नहीं है।" फलितार्थ यह निकला कि संशपक्षानमें पदार्थ का निश्चय नहीं होता और अपग्रह में होता है। अत: अपग्रह
संशयमान से पृथक् है। 20 अवग्रह से जाने हुये अर्थमें उत्पन्न संशयको दूर करने के लिये
शस्ताका जो अभिलाषात्मक प्रयत्न होता है उसे ईहा कहते हैं। जैसे प्रवग्रह शान के द्वारा यह पुरुष हैं। इस प्रकार का निश्चय किया गया था, इससे यह 'दक्षिणी' है अथवा 'उत्तरीय' इस प्रकार के सन्देह होने
पर उसको दूर करने के लिये यह दक्षिणी होना चाहिये' ऐसा ईहा 25 नाम का जान होता है।