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________________ सम्पादकीय बंशीधरजी व्याकरणाचार्यने संस्कृत टिप्पणको सुनकर पावश्यक सुझाव घेने तथा मेरी प्रार्थना एवं लगातार प्रेरणासे प्राक्कथन सिख देनेकी कृपा को और जिन अनेकान्तादि विषयोंपर में प्रकाश डालनेसे रह गया पा उनपर आपने संक्षेपमें प्रकाश डालकर मुझे सहायता पहेबाई है। मान्यवर मुख्तारसा की पीर प्रेरणा और सत्परामर्श तो मुझे मिलते ही रहे । प्रियमित्र पं० अमृतलालजी जनदर्शनाचार्यने भी मुझे सुझाव दिये । सहयोगी मित्र पं० परमान्दजी शास्त्रीने अभिनवों और धर्मभूषणोंका संकलन करके मुझे दिया। वा. पन्नालासजी मग्रवालने हिन्दीकी विषय-सूची बनाने में सहायता की बा० मोडीसालवी भोर सा. जुगलकिशोरजीने मिरियावल जैनिज्म के अंग्रेजी लेखका हिन्दीभाव समझाया। उपान्तमें मैं अपनी पत्नी सौ. चमेलीदेवीका भी नामोल्लेख कर देना उचित समझता हूँ जिसने भारम्भमें ही परिशिष्टादि तैयार करके मुझे सहायता की । मैं इन सभी सहायकों तथा पूर्वोल्लिखित प्रतिदातामोंका आभार मानता है। यदि इनकी मूल्यवान् सहायताएं न मिली होती तो प्रस्तुत संस्करणमें जो विशेषताएँ पाई है वे शायद न पा पातीं । भविष्य में मी उनसे इसी प्रकारकी सहायता देते रहनेकी आशा करता हूँ। । अन्तमें जिन प्रपने सहायकोंका नाम भूल रहा हूँ उनका भौर जिन ग्रंथकारों, सम्पादकों, लेखकों भादिके ग्रंथों मादिसे सहायता ली गई है, उनका भी प्राभार प्रकाशित करता हूँ। इति शम् । ता० ६.४.४५ वीर सेवामन्दिर, सरसावा हाल देहली। सम्पादक दरबारीलाल जैन, कोठिया म्यायाचार्य, न्यायतीर्थ, बैनदर्शनशास्त्री
SR No.090311
Book TitleNyayadipika
Original Sutra AuthorDharmbhushan Yati
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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