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________________ न्याय-दीपिका तीसरी विशेषता अनुवादको है । अनुवाद को मूलानुगामी भोर सुन्दर बनानेकी पूरी चेष्टा की है। इससे न्यापदीपिकाके विषयको हिन्दीभाषाभाषी भी समझ सकेंगे और उससे यथेष्ट साभ उठा सकेंगे । __चौथी विशेषता परिशिष्टोंकी है जो तुलनात्मक अध्ययन करनेवालों के लिये और सर्वके लिये उपयोगी है। सब कूल परिशिष्ट हैं जिनमें न्यायदीपिकागत प्रवतरणवाक्यों,ग्रन्थों,ग्रन्थकारों शादिका संकलन किया गया पाँचवीं विशेशता प्रस्तावना की है जो इस संस्करण की महत्त्वपूर्ण और सबसे बड़ी विशेषता कही जा सकती है । इसमें ग्रन्थकार २२ विषयोंका तुलनात्मक एवं विकासक्रमसे विवेचन करने तया फुटनोटोंमें अत्यान्तरोंके प्रमाणोंको देनेके साथ ग्रन्थमें उल्लिखित ग्रन्थों और प्रत्यकारों तथा अभिनय धर्मभूषणका ऐतिहासिक एवं प्रामाणिक परिचय विस्तृतरूपसे कराया गया है । जो सभी के लिये विशेष उपयोगी है । प्राक्कपन प्रादि को भी इसमें सुन्दर योजना हो गई है । इस तरह यह संस्करण कई विशेषतामोंसे पूर्ण हुआ है। माभार. अन्तमें मुझे अपने विशिष्ट कर्तव्यका पालन करना भौर क्षेष है। वह है भाभार प्रकाशनका । मुझे इसमें जिन महानुभावोंसे कुछ भी सहायता मिली है मैं कृतज्ञतापूर्वक उन सबका नामोल्लेख सहित भाभार प्रकट करता है गुरुवर्य श्रीमान् पं० कैलाशचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्रीने मेरे पत्राविका उत्तर देकर पाठान्तर लेने मादिके विषयमें अपना मूल्यवान् परामर्श दिया । गुरुवर्य मौर सहाध्यायी माननीय पं. महेन्द्रकुमारजी न्यायापार्यने प्रपनोंका उत्तर देकर मुझे अनुगृहीत किया । गुरुवय्यं श्रद्धेय पं० सुखलालजी प्रशानयनका मैं पहले से ही अनुगृहीत था और मब उनकी सम्पादनदिशा तथा विचारणा से मैंने बसत लाम लिया । माननीय पं.
SR No.090311
Book TitleNyayadipika
Original Sutra AuthorDharmbhushan Yati
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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