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प्रस्तावना
__पट्टका समय यदि २५ वर्ष भी हो तो इनका पट्टार बैठने का ममय शक
सं० १२५० के लगभग पहुंच जाता है उस समय या उसके उपगन्त वेशववर्णी को आयुक्त टोकाके लिखने में उनसे आदेश एवं प्रेरणा मिलना असम्भन नहीं है । कि केशववर्णीने अपनी उमटीका मनमः १२८१ में पूर्ण की है। अतः उस जैसी विशाल टीकाके लिखनेके लिए ११ वर्ष जितना समझ का लगना भी आवश्यक एवं मगन है । प्रथम व नृतीय धर्मभाषण केवीके टीकाप्रेरक प्रनीत नहीं होते। क्योंकि नृतीय धर्मभुषण जीवतत्व प्रदीपिकाके ममाप्ति काल (क० १२८१ ) मे कारीब १६ वर्ष वान गृम्पट्ट के अधिकारी हा जान पड़ते हैं पोर उम समय ने प्रायः २० वर्ष के होंगे अनः जी० न० १० के रचनारम्भसमयमें तो उनका अस्तित्व ही नहीं होगा तब वे नजयवर्णीके टीका-प्रेरक
से हो सकते ? और प्रथम धर्मभूषण भी उनके टीकाप्रेग्क मम्भव प्रतीत नहीं होने । कारण, उनसे पर अमरकोनि और अगरफीनिके
पर द्वितीय धमभूषण (शक १२७०-१२६५) बैठे है । अन: अमरकीर्तिका पट्टसमय अनुमानतः शकस० १२४५-१२७० और प्रथम श्रमभुषणका शव.सं. १२२५--१२४५ होता है । ऐसी हालत में यह सम्भव नहीं है कि प्रथम धर्मभूषण शकसं. १२२०-१२४५ में केशववर्णीको जीवतत्त्वप्रदीपिकाके निखने का आदेश दें और वे ६१ या ३६ को जैसे इतने बड़े लम्बे समय में उसे पूर्ण करें। अनार व यही प्रतीत होना हैं कि द्वितीय धर्मभूषण (शक १२७०-१२६५)हो बेमववर्णी (गक.. १२८१) के उक्त दीकाके लिखनेमें प्रेरक रहे हैं । अस्तु ।
पीछे में यह निर्देश कर अाया है कि नृतीय धर्मभूषण ( ग्रन्धकार ) शकसं० १९९५ में और शकसं०१३०७ के मध्य में किसी समय अपने बद्धमानगुरुके पट्टपर आसीन हुए हैं । अतः यदि वे पट्टपर बैठने के समय (करीब शक १३०० में) २० वर्ष के हो, जैसा कि मम्भव है तो उनका जन्मसमय शकम० १२८० (१३५८ ई.) के करीब होना चाहिए। विजय