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________________ नगर शाखाज्य स्वामी प्रथम देवराय और उनकी मी नीमादेवी जन गुफे शिवधर्म पर जिन्हें अपना गुरु मन त जिनसे प्रभावित र प्रभावना में प्रश्नही धर्माधिकार है। पद्मावीवस्तीके एक गाजविराजपरमेश्वर देवराय प्रथम बर्जमानमनि भूपण गुरुके, जो करे विद्वान थे, नया में नमस्कार किया कर थे। बानका समर्थन क याने यादिमहाशास्त्र को गमाद करनेवाले कवि मग ग्रन्थगत निम्न को होता है:'राजापि परञ्चदेवराय भूपालमॉलजिमः । श्रवमाननवल्लभनयधभूषणमुखी जयति क्षमादय' ।।" प्रसिद्ध है कि विजेचनगर नरेश प्रथम पर की १०४० २० एक हो 'राजाधि मे रुपि । इनका राज्य समय सम्भवत. है यद्वितीय २०१८१३ से १८४६ कि मानके या के द्वारा सम्मानित मानके शिष्य TH मान जा । : जिग्य वर्तण व्रत (कार) ही देवराय खं प्रथम व द्वितीय भूषण नही क्योंकि १ प्रशस्तिस० १२५ से २-३ देवो. डा० भास्कर श्रानन्द Mediaeval Jainism' P. 300 301 (Ma aż 30 मा० ने द्वितीय देवराव ( १०१६ - १९०६ ई० ) की तरह प्रथम देवरायके समय का नि नहीं किया दो ही धर्मपण गयी है और उनमें प्रथम का समय १३७८ ई० श्रीर दूसरे का २० १८०३ बनते हैं तथा इस झमेले में पड़ गए हैं कि कौन से धर्मभूषण का सम्मान देवराय प्रथमके द्वारा हुआ था ? (देखो मिडि यावल जैनिज्म १० ३०) |होता है कि उन्हें विजयनगर का 1 aat
SR No.090311
Book TitleNyayadipika
Original Sutra AuthorDharmbhushan Yati
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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