SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 500
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नियमसार तथा चोक्त श्रीसमन्तभद्रस्वामिभिः-- ( अपरवक्त्र ) "स्थितिजनननिरोधलक्षणं चरमचरं च जगत्प्रतिक्षणम् । इति जिन सकलज्ञलांछन वचनमिदं वदतांवरस्य ते॥" तथा हि ( वसंततिलका) जानाति लोकमखिलं खलु तीर्थनाथः स्वात्मानमेकमनघं निजसौख्यनिष्ठम् । नो वेत्ति सोऽयमिति तं व्यवहारमार्गाद् वक्तीति कोऽपि मुनिपो न च तस्य दोषः ।।२८५।। - - - - - - - ----- --- - इसीप्रकार गे धी समंतभद्र स्वामी ने भी कहा है "श्लोकार्थ—हे 'जिनदेव ! आप वक्ताओं में थंष्ठ हैं यह चर जंगम और अचर स्थावररूप जगत् प्रतिक्षण उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य लक्षणवाला है, ऐसा यह आपका वचन सर्वज्ञता का चिह्न है ।" ___ उसीप्रकार [टीकाकार मुनिराज व्यवहार कथन की अपेक्षा से कलश काव्य कहते हैं (२८५) श्लोकार्थ-तीर्थनाथ भगवान वास्तव में अखिल लोक को जानते हैं किंतु वे निज सौख्य में निष्ट एक निर्दोष अपनी आत्मा को नहीं जानते हैं। इस प्रकार से कोई भी मुनिपति व्यवहार मार्ग से उन समदर्शी को ऐसा कहते हैं तो उन्हें कोई दोष नहीं है। १. बृहत्स्वयंभूस्तोत्र, मुनिसुव्रतनाथ की स्तुति में लोक, ११४
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy