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________________ व्यबहार नय से प्रात्मा पूदगलकम का व.र्ता और भोक्ताहै तथा प्रशव मिश्चयनयसे कर्म जनित रागादि भावों का कर्ता है । संस्कृत टीकाकार मे नय विवक्षा से कर्तृत्व मोर भोक्तृत्व भाव को स्पष्ट करते हुए कहा है कि निकटवर्ती भनुपचरित मसद्भूत व्यवहार नय की अपेक्षा मात्मा द्रव्य कर्मों का कर्ता है तथा उनके फलस्वरूप र प्राप्त होने वाले सुख-दुःख का भोक्ता है। प्रशुद्ध निश्चयनय की प्रपेक्षा समस्त मोह-राग-दंष रूप भाव कर्मों का कता है तथा उन्हीं का मोक्ता है। गुम्पार प्राद्ध व्यवहार नय की अपेक्षा शरीर रूप नो कमाँ का कर्मा और मोक्ता है तथा उपचरित मसदृभूत व्यवहार नय से घटपादिका बर्ता और मौका है। जहां निश्चयनय और यवहारमय के भेद से नयके दो भेद हो विवक्षित हैं वहां प्रात्मा निाचरनय की अपेक्षा अपने ज्ञानादि गुणों का का भोक्ता होता है और व्यवहार नप से रागादि भाव कमी का । श्री पद्मप्रभमलधागे देव ने कहा है द्वी हि नयो भगवदहपरमेशवरेण प्रोक्तो थ्याथिकः पर्यापारिकश्चेति । द्रव्यमेवार्थः प्रयोजनमस्येति प्रध्यापिकः । पर्यायः एव प्रपोजनमस्येति पर्यायाथिकः न दलु एफ नयायत्तोपदेशो प्राह्यः किन्तु तदुपयापत्तोपदेशः । भगवान अहंन्त परमेश्य ने दो नय हे एक द्रव्याथिक और दूसरा पर्यायाथिक । का ही जिसका प्रयोजन है वह दध्याथिकनय है और पर्याप ही जिसका प्रोजन है वह पयायाथिक नय है । एक नय के अधीन उपदेश ग्राह्य नहीं है किन्तु दोनों नचों के अधीन उपदेश ग्राह है। यह उल्लेख पार किया जा चुका है कि नय वस्तु स्वरूप को समझने के साधन है, वक्ता पाय की योग्यता देखत्र. विवक्षानुसार उभयनयों को अपनाता है । यह ठीक है कि उपदेश के समय एक नय मुख्य तथा दूसरा नय गौण होता है परन्तु, मर्वथा उतित नहीं होता। इम परिप्रेक्ष्य में जब घकालिक स्वभाव को ग्रहण करने वाले द्रव्याथिवनय की अपेक्षा वपन होता है। तब जीव द्रव्य गमादिक विभाव परिणति तथा नरनारकादिक सञ्जन पर्यायों मे रहित है यह बात पाती है और नव पर्यायाथिक नाय की अपेक्षा कथन होता है तब जीव इन मबसे सहित है यह बात प्राती है। (२) अजीवाधिकार : पुद्गल, धर्म, अधर्म, प्राकाश और काल ये पांच पजीव पदार्थ है। पुदगल द्रव्य प्रणु पोर स्वान्ध के भेद मे दो प्रकार का होता है । उनमें स्कन्ध के प्रतिस्पून स्यूल, स्यूलसूक्ष्म, सूक्ष्मस्थूल, सूक्ष्म और प्रतिसूक्ष्म के भेद से ६ भेद हैं । पृथिवी, तेल प्रादि, छाया, बानप भादि, चक्षु के सिवाय शेष चार इन्द्रियों के विषय, कार्मण वर्गणा पौर घणकाकन्ध ये असिस्मूल आदि स्कन्धों के उदाहरण हैं । अणु के कारण अणु और कार्यप्रण के भेद से दो भेद हैं । पृथिवी, जल, अग्नि और वायु इन चार धातुपों की उत्पत्ति का जो कारण है से कारण परमा और
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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