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________________ Mand ALLA . हमने ७०-८० प्रतियां देखी हैं रायका यही हान है मुद्रित प्रति में अपभ्रशका एक दोहा भी शामिल हो गया है तथा कुछ इस अभिप्राय की गाथाएं हैं जिनका कुदकुदकी विचारधारा से मेल नहीं खाता । इंद्रनंदि के घुप्तावतार के अनुसार षट्खण्डागम के भाद्य भाग पर कुदकुद स्वामी के द्वारा रचित परिफर्म ग्रंथ का उल्लेख मिलता है। इस ग्रंघ का उल्लेख षट्खण्डागर के विशिष्ट पुरस्कर्ता याचार्य वीरसेन ने अपनी टीका में कई जगह किया है । इससे पता चलता है कि उनके समय तक तो वह उपलब्ध रहा । परंतु प्राजकल उसको उपलब्धि नहीं है। प्रसन्न भण्डारों, खासकर दक्षिण के शास्त्र भण्डारों में इसकी खोज की जानी चाहिये । मूल। चार भी दफ द ग्वामी के द्वारा रचित माना जाने लगा है चपोंकि उसकी अंतिम प्रष्पिकामें "ति मूलाचार विती द्वादशोऽध्यायः । कदकुंदाक्यं प्रणीत मूलाचाराख्य विवृति: । कृनिरिय धसुनन्दिनः श्रमसमयह उलेख पाया जाता है । विशेष परिज्ञान के लिये पुरातन वाक्य सूत्री को प्रस्तावना में स्व० ५० जुगलकिशोरजी मुख्त्यार का संदर्भ पठितम्य है । फन्दकन्द साहित्य में साहित्य सुषमा : कुदबा दाचार्य ने अधिकांश गाथा दशा, जो कि प्राय नाम ग प्रसिद्ध है, प्रयोग विगा है। यहीं मनुष्टप प्रो मजाति का भी प्रयोग किया है। कहीद वापरत-पढ़ने धीच म यदि विभिन्न छंद या जाता है तो उगसे 116 को एक दश : 1.1 नाव स्वामी तो वध अनुष्टुप इंधों का नमुना देखिये 1 ममति परिवज्जामि निम्मत्तिमुदिदी । आसवणं च में आदा अवसेसाईबासरे ॥५॥-भाव प्राभूत एगो मे सम्सदो अण्णा जाणवंसणलस्खणी। सेसा मे बाहिरा भावा सम्वे संजोगलक्खणा ॥५२॥-भाव प्रामृत सुहेण भाविदं गाणं वुहे जावे विणसदि । तम्हा जहावलं जाई अप्पा दुखेहि भावए 11६२॥-मोक्ष प्राभृत विरवी सध्वसावज्जे त्रिगुत्ती पिहिदिविओ। तस्स सामाइगं ठाइ इदि कंवलिसासणे ।।१२।। नो समो सवभूदेसु सावरेसु तसेसु वा । तास सामाइगं ठाइ इदि विलिसासणे ।।१२६॥-नियमसार चेया उपयटी अठं उपज्जइ विणस्सद । पयडी वि चेययदळ उम्पज्जव विणस्सा ॥३१२॥
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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