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________________ एवं बंधी उ चुम्हें वि अपणोण्णापच्नया हवे। अपणो पपडीए य संसारो तेण जायए ॥३१३||-समय प्राभूत एक उपजाति का नमूना देखिये-- गिद्धस्स णिण दुराहिएण तुक्खस्स लुमखेण चुराहियेण। गिद्धस्स सुक्खेण हवेवि बंधो जहण्णवज्ले विसमे समे वा ॥-प्रवचनसार प्रलंकारों की पुट भी कुदकुदस्वामी ने यथा स्थान दो है । जैसे, अप्रस्तुत प्रशंसा का एक उदाहरण देखिये. ण मुपद पडि अभन्यो मुवि आयष्णिउण जिणधम्म । उद्ध' पिपिता ण पग्णयाणिविसा होति ॥१३६-भाव प्राभूत थोड़े से हेर-गोर के साथ यह गाथा समय प्राकृत में पाई है । उगमालंकार को घटा देखिये - जह तारयाण चंदो पयराओं मयाउलाण सम्याण। अहिजो तह सम्मत्तो रिसिसाषण वृविहधम्मागं ॥१४२॥ जह फणिराओ रेहा पणमणिमाणिककिरणविप्फुरिओ। तह विमलदसणधरी जिणभत्ती पचयणो जीयो ॥१४॥ मह तारायण सहिये ससहरविवं खमंडले विमले। भाचिय तह बय विमलं जिलिंग दंसणधिसूद्ध' ।।१४४॥ जह सलिलेण ण सिप्पा कर्मालगिपत्त सहावपपहीए। तह मावण ण लिप्पा कसायविसर हि सुपुरिसो ।।१५२।। मात्र प्रामृत रूपकालंकार की बहार देखिये - जिणवर-चरणंबुरुहं मंति जे परमभनिरायेण । ते जम्मवेल्लिमूर्ण खति वरभाषसत्वेण ॥१५॥ ते धीर धीर पुरिसा खमदमखग्गेण विष्फरतेण । दुज्जयपलबलुद्धरकसायमणिज्जिया जेहिं ।।१५४॥
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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