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________________ कुन्दकुन्द स्वामी का समय : कुन्दकुन्द स्वामी के समा निर्माण पर "मनसार" की प्रस्तावना में हा० ९० एन० उपाध्ये ने, "समन्तभद्र" की प्रस्तावना में स्व. श्री जुगल किशोरजी मुख्त्यार ने, “पंचास्तिकाय" को प्रस्तावना में ढा० ए. चक्रवर्ती ने तथा "दद प्राभूत संग्रह" की प्रस्तावना में श्री पं० लाशचन्दजो शास्त्री ने विस्तार से चर्चा की है। लेख विस्तार के भय से मैं उन सब चर्चानों के अवतरण नहीं देना चाहता । जिज्ञासु पाठकों को तत् तत् प्रन्यों से जानने को प्रेरणा करता हुमा कुकुद स्वामी के समय निर्धारण के विषय में प्रचलित मात्र दो मान्यतामों का उल्लेन कर रहा हूँ । क मान्यता प्रो० हानले द्वारा सम्पादित नन्दिसघ की पट्टायलियों के आधार पर यह है कि कुन्दकुन्द विक्रम को पहली शताब्दी के विद्वान् थे । वि० सं० ४९ में ये प्राचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए, ४४ वर्ष की भावस्था में उन्हें आनायं पर मिला, ५१ वर्ष १० महीने तक दे उग पद पर प्रतिष्ठित रहे और उनकी कुल प्रायू ६५ वर्ष १० माह ६५. दिन की थी। डा० ए० चक्रवर्ती ने पंचास्तिकाय की प्रस्तावना में अपना ही अभिप्राय प्रकट किया है । घोर दुसरी मान्यता यह है कि वे विक्रम को दूमरी शताब्दी के उत्तर प्रथवा तोरो शताब्दी के प्रारम्भ के विद्वान हैं । जिसका समर्थन स्व. श्री नायूगाजी प्रेमी तथा पं. जुगलकिशोरजी गन-यार प्रादि विद्वान करते मांगे हैं। कन्दकन्द के प्रत्य और उनकी महत्ता : दिगम्बर जैन प्रायों में बुदबुदानायं द्वारा रचित ग्रंय घरपना अलग प्रभाव रमते हैं। इनकी वर्णन पाली ही इस प्रकार की है कि पाठक उस से वस्तु स्वरूप का अनुगम बड़ी सरलता से कर लेता है। वर्ग के विस्तार से रहित, नपे-तुले पादों में किसी बात को वाहना इन ग्रन्थो का विशेषता है। कूदकूद की वागी मीधी हृदय पर प्रसर करती है । निम्नांकिा पथ कुदकुद स्वामी के द्वारा रचित निर्विवाद रूप से माने जान है तथा जैन समाज में उनका सर्वोपरि गान है । (१) पचा स्तिकाय (२) समयमार (३) प्रवचनसार (४) नियमसार (५) अष्टपाह। दमरण पाहट, चरित्तपाहुड, मुत्तपाहुह, बोधपा हुड, भावपाड, मोसपाहुड, सीलपहुई और निगपाहत । (६) वारस गुदेवाया पौर निमगहो। इनके मिना-: "रयणगार'' नाम का ग्रंथ भी कुदकुद स्वामी के द्वारा रचित प्रसिद्ध है तु उसके अनेक पाठ भेद देख कर विद्वानां का मत है कि यह कदद के द्वारा रचित नहीं है अथवा इसके अंदर अन्य लोगों की गाथाएं भी सम्मिलित हो गई हैं। भाण्डारकर रिसर्थ इस्टीट्यूट पूना से हमने १८२५ संवत् को लिखित हस्तलिखित प्रति बुलाकर उससे मुद्रित रयणा सार की गाथाओं का मिलान किया तो बहुत मंतर मालूम हुमा । मुद्रित प्रति में बहुत सी गाथाएं छुटी हुई हैं तथा नवीन गाथाएं मुद्रित हैं । उस प्रतिपर रचयिता का नाम नहीं है। उघर सची में भी यह प्रति प्रज्ञात लेखक के नाम से दर्ज है। चर्चा पाने पर पं.परमानंदजी शास्त्री ने बतलाया कि - - - - -
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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