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________________ ११६ 1 नियमसार पंचाना भावानां मध्ये क्षायिकभावः कार्यसमयसारस्वरूपः स त्रैलोक्यप्रक्षोभहेतुभूततीर्थकरत्वोपाजितसकलविमलकेवलावबोधसनाथतीर्थनाथस्य भगवतः सिद्धस्य वा भवति । प्रौदयिकोपशामिकक्षायोपमिकभावाः संसारिणामेव भवन्ति, न मुक्तानाम् । - ---- ------- - भेएण" । 'श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्ताचार्य ने कहा है- "खग्रोवसमिय भावो चउणाण तिदसण ति अण्णा । दाणादि पंच बेदग सरागचारिल देसजमं ।। ८१७॥" क्षायोपशर्मिक भाव से चार ज्ञान, तोन दर्शन, तीन अज्ञान, दानादि पांच लब्धि, वेदक सम्यत्व, सराग चारित्र और देशसंयम ये १८ भेद हैं। श्री अकलंक देन ने कहा है कि"लब्धयः पंच क्षायोपशमिक्यः दानलब्धिाभलब्धि गलब्धिरूपभोगलब्धिर्वीर्यलब्धिश्चेति" अर्थात क्षायोपशमिक लब्धि के पांच भेद हैं-दान लब्धि, लाभ लब्धि, भोग लब्धि, उपभोग लब्धि और वीर्यलब्धि । ऐसी ही ये लब्धियां मिथ्यात्व गुणस्थान में तथा एकेन्द्रिय प्रादि जोत्रों में भी मानी गई हैं। गोम्मटसार जीवकांड में सम्यक्त्व के लिए पांच लब्धि कही गई हैं "खय उपसमिय विसोही देसणपाउगकरण लद्धी य । चत्तारि विसामण्णा करणं पुण होदि सम्मत्ते ।।६५१।।" गाथार्थ-क्षायोपमिक, विशुद्धि, देशना, प्रायोग्य और करण ये पांच लब्धियां हैं। इनमें से पहले की चार तो सामान्य हैं, ये भव्य--अभव्य दोनों के संभव हैं, किन्तु करणलब्धि विशेष है यह भव्य के हो हा करती है और इसके होने पर सम्यक्त्व या चारित्र नियम से होता है । यहां दीका में उपर्युक्त लब्धि में विशुद्धि का नाम नहीं है किन्तु काललब्धि का नाम है । टोकाकार ने किस अपेक्षा से इन लब्धियों को लिया है इसका निर्णय केवली-श्रुतकेबली के पादमूल में ही हो सकता है । मागे एक पंक्ति है कि "पूर्वोक्तभावचतुष्टयमावरणसंयुक्तत्वात् न मुक्तिकारणं" इसमें क्षायिकभाव को भी प्रावरण संयुक्त होने से मुक्ति का कारण नहीं कहा है किन्तु १. गोम्मटसार कर्मकांड। २. तत्त्वार्य वा. पृ० १०७ ।
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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