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________________ शुद्धभाव अधिकार [ ११५ मसंयमता चंका, असिद्धत्वं चैकस्, भुक्लपपीतकापोतनोलकृष्णभेदाम्लेश्याः षट् च यन्ति । पारिणामिकस्य जीवत्वपारिणामिका, भव्यत्वपारिणामिकः, अभव्यरवपारिशामिकः इति त्रिभेदाः । अयायं जीवत्वपारिपामिकभावो भव्यामव्यानां सदशः, भन्यसारिणामिकभावो भव्यानामेव भवति, प्रभव्यत्वारिणामिकमावोऽभव्यानामेव मदति । इति पंचभावप्रपंचः। -- .. . .. ... ... ... - - -- -- - -- इक्कीस भेद होते हैं । पारिणामिक भाव के जीवत्व पारिणामिक, भव्यत्व पारिणामिक मोर अभव्यत्व पारिणामिक ऐसे तीन भेद हैं । ___ यह जीवत्व नाम का पारिणामिक भाव भव्य और अभव्य सभी जीवों में समान है, भव्यत्व नाम का पारिणामिक भाव भव्यजीवों में ही होता है और अभव्यत्व नामक पारिणामिकभाव अभव्यों में हो होता है । इसप्रकार से पांचों भावों | का विस्तार हुआ। इन पांचों भावों में से क्षायिकभाव कार्यसमयसार स्वरूप है, वह तीनों लोकों 1 में प्रक्षोभ-हलचल के लिए कारणभूत जो तीर्थकर प्रकृति उसके द्वारा अजित जो सकल विमल केवलज्ञान उससे सनाथ भगवान् तीर्थंकर देव अथवा सिद्ध भगवान् के होता है। औदायिक, प्रौपशमिक और क्षायोपशमिक भाव संसारी जोवों में ही होते हैं, मुक्त जीवों में नहीं होते हैं । ! पूर्वोक्त चारों भाव अावरण सहित होने से मुक्ति के कारण नहीं हैं | तोनों कालों में उपाधि से रहित है स्वरूप जिसका ऐसे निरंजन-निर्दोष, निजपरम पंचम । माव-पारिणामिक भाव की भावना से मुमुक्षुजन पंचमगति को जाते हैं, जावेंगे और विशेषार्थ- यहां पर पांचों भावों में जो क्षायोपशमिक भाव है उसमें श्री टीकाकार ने काललब्धि, करणलब्धि, उपदेशलब्धि, उपशमलब्धि और प्रायोग्यलब्धि है ऐसे पांच भेद किये हैं किन्तु सर्वत्र क्षायोपशमिक भावों में दानादि ५ क्षयोपशम सब्धियां ली गई हैं। जैसे-'श्री वीरसेनाचार्य ने कहा है "लद्धी पंचविहा दाणादि १. धवल पु० ५ पृ. १६२ ।
SR No.090308
Book TitleNiyamsar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages573
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size13 MB
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