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________________ ५१२ नियमसार-प्राभृतम् भूयांसुः, भगवन्महावीरस्वामिपादपदमप्रसादान्ममापि एतादृशी सिद्धपदप्राप्तिकरणक्षमा शक्तिर्भयात् ॥१७६॥ पुनस्ते सिद्धा अकिंचनाः शून्या वा भवन्त्युत तेषां सकाश फिभप्यस्तीति शंकायां समादधते आचार्यदेवाः जाइजरमरणरहियं, परमं कम्मवज्जियं सुद्धं । जाणाइचउसहावं अक्खयमविणासमच्छेय ॥१७७॥ अठवाबाहमणिदियमणोवमं पुण्णपात्रणिम्मुक्क। पुणरागमणविरहिय णिच्च अचलं अणालंबं ॥१७८॥ जाइज रमणरहियं-जातिः जन्म, जरा वृद्धावस्था, मरणं शरीराविदशप्राणानां विनाशो मृत्युः, तैः रहितं गुणं शुद्धावस्थां वासौ कर्मनिर्मुक्त आत्मा प्राप्नोति, "पाइव" इति क्रियाया अध्याहारोऽत्र कर्तव्यः । अथवा यत्र जातिजरामरणरहितं उन भगवान् का और निर्वाणगमन एवं दीपावली मनाने का प्रकरण सामने होने से इस टीका में समयोचित यह प्रकरण ले लिया है ।।१७६।। पुनः वे सिद्ध अकिंचन या शून्य हो जाते हैं, या उनके पास कुछ रहता भी है ? ऐसी आशंका होने पर आचार्यदेव कहते है अन्वयार्थ-~(जाइजरमरणरहियं परमं कम्मदछवज्जियं सुद्ध) जन्म जरा मरण से रहित, परम, आठ कम से जित, शुद्ध, (णाणाइच उसहावं अक्खयमविणासमच्छेय) ज्ञान दर्शन सुखवीर्य स्वभाववाला, अक्षय, अविनाशी, अच्छेद्य, (अव्वाबाहमणिदियमणोब मं पुण्णपावणिम्मुक्क) अव्याबाब, अतीन्द्रिय, अनुपम, पुण्यपाप से रहित, (पुण रागमण विरहियं णिच्च अचलं अणालंब) पुनरागमन से रहित, नित्य, अचल और आलंबनरहित, ऐसा सुख उन सिद्धों को प्राप्त हो जाता है। ___टोका--जाति-जन्म, जरा-वृद्धावस्था, मरण-शरीर आदि दश प्राणो का विनाश होना मृत्यु है, इन जन्मादि से रहित गुण को-शुद्धावस्था को यह कर्म से रहित हुआ आत्मा प्राप्त कर लेता है। ऐसा पाव इ" इस क्रिया का अध्याहार कर लेना चाहिये अथवा जहां पर जन्मादि से रहित निर्वाण है ऐसे लोकाग्र को
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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