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________________ ५०६ नियमसार-प्राभृतम् च, त एवेदगर्हत्पदयों लप्स्यन्ते । कि च, अयोभिर्लोहपात्राणि सुवर्णेन स्वणिमकटफकुंडलमद्रिकादयो जायन्ते, तथैवात्मनोऽशुद्धभावनाहं सुखो दुःखी संसारी नपो वराको दोनो वेत्याधनभूत्याऽयमात्मा तथैव भवति । पुनश्चाध्यात्मयोगेन शुद्धज्ञानज्योतिः परमात्मा भवतीति ज्ञात्वाहत्पदकमलयोः मनः कृत्वा मनसि चाहत्पादपद्म निधाय स्वात्मतत्त्वमेव भवता चिन्तनीयम् ॥१७॥ एवं "जाणतो पस्संतो" इत्यादिना केवलिजिनानामिच्छापूर्वकज्ञप्तिवृशिक्रियादिव्यध्वनिस्थानोपवेशनविहार क्रियाः स्वभावेनैव भवन्तीति गायाचतुष्टयेन तृतीयोऽन्तराधिकारो गतः । इतः पर्यंतमहत्स्वरूपवर्णनं कृत्वाऽग्ने सिद्धस्वरूपं वर्णयिष्यन्ति । स्वरूप मानते हैं, वैसा ही चितवन करते हैं-भावित करते हैं-अनुभव करते हैं, वे ही ऐसी अहंतदेव को पदवी को प्राप्त करेंगे; क्योंकि लोहे से लोह पात्र और सोने से सुवर्णमय कड़ा, कुण्डल, अंगूठी आदि बनते हैं । वैसे ही अशुद्ध भाव से "में सुखी हूँ, दुःखी हूँ, संसारी हूँ, राजा हूँ, बेचारा हूँ, अथवा दीन हूँ इत्यादि रूप अनुभूति से यह आत्मा वैसा ही होता रहता है और पुनः अध्यात्म योग से शुद्ध ज्ञानज्योति परमात्मा हो जाता है। ऐसा जानकर अहंतदेव के चरणकमल में मन लगाकर और अपने मन में अहंतदेव के चरणकमल को स्थापित कर आपको स्वात्मतत्त्व का ही चितवन करना चाहिये । भावार्थ-यहाँ अतिशयों में केवलज्ञान के ग्यारह और देवकृत के तेरह कहे हैं, सो तिलोयपण्णत्ति के आधार से कहे हैं। नंदीश्वरभक्ति में श्री पूज्यपादआचार्य ने केवलज्ञान के दस और देवकृत चौदह अतिशय माने हैं। वर्तमान में प्रसिद्धि भी ऐसी ही चली आ रही है, किंतु यहाँ पर दिव्य ध्वनि को देवकृत अतिशय में न लेकर भगवान् के केवलज्ञान के अतिशय में लिया है ॥१७५।। इस प्रकार "जाणतो पस्संतो" इत्यादिरूप से केवली भगवान की इच्छापूर्वक जानने देखने की क्रिया, दिव्यध्वनि, स्थान, बैठना, बिहार आदि क्रियायें स्वभाव से ही होती हैं, इस तरह कहने वाली चारों गाथाओं द्वारा यह तीसरा अंतराधिकार पूर्ण हुआ। यहाँ तक अहंतदेव के स्वरूप का वर्णन करके अब आगे सिद्धों का स्वरूप कहेंगे।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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