SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 533
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५०१ नियमसार-प्राभूतम् विरोधिनामपि दर्पणतल इव स्वच्छरत्नमयी भूमिः, इंद्राज्ञया मेघकुमारकृतगन्धीदकवर्षा, फलभारनशा लिधान्याविसस्यानि सर्वजनतानंद:, शीतलमदसुगंधपवनः, कूपतडागादिषु निर्मलजलपरिपूर्णता, धूमोल्कापातादिविरहिताकाश निर्मलता, सकलप्राणिषु रोगादिबाधाविरहितत्वम् यक्षेन्द्रमस्तक स्थित चतुर्दिव्यधर्मचक्रम् पावनिक्षेपस्थानेषु दिव्यसुरभितसुवर्णकमलानि -- इमे त्रयोदशातिशया' देवोपनीता भवन्ति । पुनश्च - " अशोकवृक्षः सुरपुष्पबृष्टिवित्यध्वनिश्वामरमासनं च । भामंडल दुन्दुभिरातपत्रे, सत्प्रातिहार्याणि जिनेश्वराणाम् ॥ एतादृक्कल्पनातीत विभवसमेतसमवसरणेऽर्हस्केलिनो विराजन्ते । तेषां भुक्स्युपसर्गाभावेन कवलाहारोपसर्गादिकल्पनाऽपि न संभवति । ते जिना इच्छामंतरेणैव होना, ४- तल के समय भूमिका स्वच्छ एवं रत्नमयी होना, ५ - इन्द्र की आज्ञा से मेघकुमार द्वारा गंधोदक की वर्षा का होना, ६- फल के भार से झुके हुए शालिधान आदि के खेतों का हो जाना, ७ – सर्वजनों को आनंद का होना, ८- शीतल मंद सुगंध हवा, ९ - कुएँ, तालाब आदि का स्वच्छ जल से भर जाना, १० धुआँ, उल्कापात आदि से रहित आकाश का निर्मल होना, ११ - सर्व प्राणियों में रोग, बाधा आदि का नहीं होना, १२ पक्षेद्रों के मस्तक पर चार दिव्य धर्मचकों का होना १३ - भगवान् के चरण रखने के स्थान आदि में दिव्य सुगंधित सुवर्ण कमलों का होना, ये तेरह अतिशय देवकृत होते हैं । पुनः १-अशोक वृक्ष, २ - देवों द्वारा पुष्पवृष्टि, ३- दिव्यध्वनि, ४- चामर, ५ - सिंहासन, ६--भामंडल, ७- दुन्दुभि बाजे और ८- छत्रत्रय, ये आठ महाप्रातिहार्य जिनेंद्रदेव के होते हैं । इस प्रकार कल्पना से भी परे वैभव से युक्त समवसरण में अहंत केवली भगवान् विराजमान रहते हैं । उनके आहार और उपसर्ग का अभाव होने से कवलाहार और उपसर्ग आदि की कल्पना भी उनमें संभव नहीं है । १. विलोयपत्ति अ० ४ ० २६४ में केवलज्ञान के ग्यारह और देवानोव ते अतिशेष माने हैं ।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy