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________________ ५०१ नियमसार-प्राभृतम् तोर्यकरमहाप्रभुकेवलिनां चतुस्त्रिशदतिशया अष्टमहाप्रातिहार्याणि छ भवन्ति । तेषां जन्मग्रहणकालादेव नित्यं शरीरे स्वेदरहितत्वमलमूत्ररहित्यदुग्धषयलरुधिरत्वावजवृषभनाराचसंहननरसमचतुरस्त्र संस्थानानुपमरूपनवचंपकसुरभित्याष्टोत्तर • सहस्रलक्षणानन्तबलबोर्यहितमितमधुरालापसहिता इमे वशातिशयाः, पुनः घासिक्षयेण केवलज्ञानोत्पन्ने सति चतुविक्ष योजनशतसुभिक्षत्वगगनगमनावयाभावभुक्त्युपसर्गाभावचतुर्मुखत्वाच्छायत्वनिनिमेवदृष्टिसर्वविद्येश्वरत्वसमनखकेशताष्टादशमहाभाषा - सप्तशतलघुभाषान्यसंज्ञिजीवसमस्ताक्षरानक्षरभाषात्मकदिव्यध्यानसहिता एते एकादशातिशया जायन्ते । पुनरपि तीर्थकरमाहात्म्येन संख्यातयोजनपर्यन्तकालेऽपि सर्वतुफलकुसुमादयः, काकधूलमपत्तास्यम् सुखवयवनः, परस्परमैत्रीभावो जन्मजातमुख सदा मंद मंद हास्य से सुशोभित है । इस प्रकार हे भगवन् ! आपका मुख आपके हृदय को आत्यंतिक शुद्धि को कह रहा है । .. तीर्थंकर महाप्रभु केवली भगवान् के चौंतीस अतिशय और आठ महाप्रातिहार्य होते हैं। उनके जन्मकाल से ही नित्य उनके शरीर में १-पसीना नहीं आता, २--मल-मूत्र नहीं रहता, ३-दूध के समान रक्त रहता है, ४-वज्र वृषभनाराचसंहनन, ५-समचतुरस्रसंस्थान, ६-अतिशय सुन्दर रूप,७-नवचंपक के समान सुगंधि, ८-शरीर में १००८ लक्षण, ९-अनंतबलवीयं और, १०-हितमितमधुरवचनालाप, ये दश अतिशय होते हैं । पुनः घातिकर्म के क्षय से केवलज्ञान उत्पन्न हो जाने पर १-चारों दिशाओं में सौ-सौ योजन तक सुभिक्षता, २-आकाश में गमन, ३-जीवघात का अभाव, ४-भोजन का अभाव, ५-उपसर्ग का अभाव, ६चारों तरफ मुख का दिखना, ७-छायारहितता, ८-निमेषरहित दृष्टि, ९-सर्वविद्या की ईश्वरता, १०-नख-केशों का न बढ़ना और ११-अठारह महाभाषा, सात सौ लघुभाषा तथा अन्य संज्ञो जीवों का समस्त अक्षर और अनक्षर भाषारूप दिव्यध्वनि का खिरना, ये ग्यारह अतिशय होते हैं । पुनः तीर्थंकर प्रभु के माहात्म्य से १-संख्यात योजन पर्यंत बिना समय के भी सर्व ऋतु के फल-फूलों का फलना, २-काँटे धूलि आदि को दूर करते हुए सुखदायी पवन का चलना, ३-जन्मजातविरोधी जीवों में भी परस्पर में मैत्रो भाव का १. धादिक्याण जादा एक्कारस अदिसया महरिया। एदे तित्थमराणं केवलणाणम्मि उप्पण्णे ॥९०६॥-तिलोमपणत्ति, अ०४
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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