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नियमसार-प्रामृतम् सूक्ष्मसांपरायक्षीणमोहगुणस्थानान्यासाद्य । पुनः कीदृशा जाताः ? केवली जादाकेवलिनो जाताः, समवसरणादिबहिरंगलक्ष्भ्या अनंतचतुष्टयाविपरमाहन्त्यलक्ष्म्या च समन्विताः परमकेवलज्ञानिनोऽर्हन्तो भगवन्तः संजाताः ।
तद्यथा-पंचसु भरतेषु पंचसु ऐरावतेषु पंचसु महाविवेहेषु च समुत्पन्ना पावन्तोऽपि महापुरुषाः सिद्धा जाताः, वर्तमानेकाले सिमन्ति, भाविकाले च सेत्स्यति, ते सर्वेऽपि षष्ठसप्तमगुणस्थानतिनो भूत्वा व्यवहारषडावश्यकक्रियां कृत्यैव सातिशयाप्रमत्तगुणादारभ्यापूर्वकरणादिक्षीणमोहगुणस्थानेषु तरतमभावेन निश्चयावश्यकं विदधाना अपि ध्यानकतानाः स्थितास्तिष्ठन्ति स्थास्यन्ति च । एता. न्यप्रमत्तादिगुणस्थानानि प्रतिपद्य क्रमेणैव ते कार्यसमयसारव्यक्तरूपानन्तचतुष्टयमयाः केवलिनो बापूः, शक्ति, भविष्यति च ।
ननु वृषभावितीर्थकरा भरतबाहुबलिनौ च व्यवहारषडावश्यकमकस्वैव केवलिनो बभूवुः, तर्हि कथमत्र सर्वे पुराणपुरुषाः कथिताः ? सत्यमुक्तं भवता; परं करण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसापराय और क्षीण मोह इन गुणस्थानों को प्राप्त कर केवली हए हैं। समवसरण आदि बहिरंग लक्ष्मी से और अनंतचतुष्टय आदि अन्तरङ्ग लक्ष्मी से सहित परम केवलज्ञानी अहंत भगवान हुए हैं ।
उसे ही कहते हैं--पाँच भरत, पाँच ऐरावत और पांच महाविदेह क्षेत्रों में उत्पन्न हुए जितने भी महापुरुष सिद्ध हुए हैं, बर्तमान काल में सिद्ध हो रहे हैं और भविष्यत् काल में सिद्ध होवेंगे, वे सभी छठे-सातवें गुणस्थानवर्ती होकर व्यवहार छह आवश्यकों को करके ही सातिशय अप्रमत्त गुणस्थान से प्रारम्भ कर अपूर्वकरण आदि से क्षीणमोह गुणस्थानों में तरतमभाव से निश्चय आवश्यक को करते हुये भी ध्यान में एकलीन स्थित हुए थे, होते हैं और होवेंगे। इन अप्रमत्त आदि गुणस्थानों को प्राप्त कर कम से ही वे कार्यसमयसार की प्रकटतारूप अनंतचतुष्टयमय केवली भगवान् हो चुके हैं, हो रहे हैं और होवेंगे ।
शंका-- ऋषभ आदि तीर्थंकरदेव, भरत और बाहुबली इन महापुरुषों ने व्यवहार छह आवश्यक क्रियायें न करके ही केवली अवस्था प्राप्त की है, तो पुनः यहाँ पर 'सभी पुराणपुरुष' ऐसा कैसे कहा है ?