SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 486
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नियमसार - प्राभृतम् ४५५ ध्यायन्त्यनुभवन्ति त एव गुरुशिष्याविभिः सह बच्चनालापेऽप्यनादरं कृत्वा अन्तर्बहिमनालम्बनेन स्वस्थचिता भवन्ति इति ज्ञात्वा प्रारम्भावस्थायामपि भवद्भिः यथाशक्ति मौनमाश्रित्यावश्यक क्रियायां वर्तनीयम् ॥ १५७ ॥ एता आवश्यकक्रियाः कः कृताः ? किं व फलं प्राप्तमिति प्रश्ने सत्याचार्यवर्या उत्तरं प्रयच्छन्तः प्रकृतमुपसंहरन्ति सब्वे पुराणपुरिसा, एवं आवासयं य काऊण । अपमत्त पहुदिठाणं पडिवज्ज य केवली जादा || १५८ ॥ एवं आवासयं य काऊण-एवं व्यवहार- निश्चय नयद्वयाश्रयं गृहीत्वा, इमां षडावश्यक क्रियां च कृत्वा, के ते ? पुराणपुरिसा - पुराणपुरुषाः तीर्थंकरचक्रयतिबलदेवप्रभूतिपुरातन महापुरुषाः । कियन्तः ? सव्वें- सर्वे, म को द्वौ त्रयां बहवां वा कतितमाः प्रत्युत सर्वेऽपि मुक्तिगामिनः । किं संप्राप्य ? अपमत्तपहुदिठाणं पडिवज्ज य-क्रमेण अप्रमत्तप्रभूतिगुणस्थानं क्षपकश्रेणिमारुह्य पूर्वकरणानिवृत्तिकरण 1 में तिष्ठते है, स्वयं अपने द्वारा, अपने लिये अपने से अपने में स्थित होकर अपना ध्यान करते हैं अनुभव करते हैं, वे ही गुरु शिष्य आदि के साथ वचनालाप में भी अनादर करके अंतरंग और बहिरंगरूप से मौन का अवलम्बन लेकर स्वस्थचित्त हो जाते हैं । ऐसा जानकर आपको प्रारम्भ अवस्था में भी यथाशक्ति मौन का . आश्रय लेकर आवश्यक क्रियाओं में वर्तन करना चाहिये || १५७॥ इन आवश्यक क्रियाओं को किन्होंने किया और उसका क्या फल प्राप्त किया ? ऐसा प्रश्न होने पर आचार्यदेव उत्तर देते हुए इस प्रकरण का उपसंहार करते हैं- अन्वयार्थ - - ( सच्वे पुराणपुरिसा एवं आवासयं य काऊण) सभी पुराण पुरुष इस प्रकार आवश्यकों को करके ( अपमत्तपहुदिठाणं पडिवज्ज य केवली जादा ) अप्रमत्त आदि स्थान को प्राप्त कर केवली हो गये हैं । टीका - इस प्रकार व्यवहार और निश्चय इन दोनों नयों का आश्रय लेकर इन आवश्यक क्रियाओं को करके तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलभद्र आदि सभी पुरातन महापुरुष मुक्ति को प्राप्त कर चुके हैं। एक, दो, तीन या बहुत ही नहीं, बल्कि सभी मुक्ति प्राप्त करने वालों ने इन आवश्यक क्रियाओं को किया है । पुनः वे क्रम से अप्रमत्त आदि गुणस्थानों को प्राप्त कर, अर्थात् क्षपकश्रेणी में आरोहण करके अपूर्व -
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy