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________________ नियमसार-प्राभृतम् "ण हि आगमेण सिम्झवि सद्दहणं जवि वि णत्थि अस्थेसु। सदहमाणो अत्थे असंजबो वा ण णिव्यादि ॥२३७।। टोकायां च--श्रद्धानशून्येनागमजनितेन ज्ञानेन तदविनाभाविना श्रद्धानेन च संयमशन्येन न तावत्सिद्धयति । असंयतस्य च यथोदितात्मप्रतीतिरूपं श्रद्धानं यथोदितात्मतत्वानुभूतिरूप ज्ञान का कि कुयात् । ततः संयमशून्यात् श्रद्धानात् ज्ञानाद्वा नास्ति सिद्धिः । अत आगमज्ञानतत्त्वार्थश्रद्धानसंयतत्वानाम् अयोगपद्यस्य मोक्षमार्गत्वं विघटेतव।" एतत्कथनात षष्ठगणस्थानादेव मोक्षमार्गों न चाधस्तात् । अथवा देशसंयतानामपि मार्गो विद्यते। यथा च प्रोक्तं श्रीजयसेनाचार्येण पञ्चास्तिकायटीकायाम् "बोतरागसर्वज्ञप्रणीतजीवादिपदार्यविषये सम्यक् श्रद्धानं ज्ञानं चेत्युभयं गहस्थतपोधनयोः समानम्, चारित्रं तपोधनानामाचारादिचरणग्नन्यविहितमार्गेण ___ 'यदि पदार्थों का श्रद्धान नहीं है, तो वह आगम के ज्ञानमात्र से सिद्ध नहीं होगा और पदार्थों का श्रद्धान करते हुए भी यदि वह असंयत है, तो भी निर्वाण को प्राप्त नहीं कर सकता।' इसकी टीका में श्री अमृतचंद्रसूरि कहते हैं___श्रद्धान से शून्य ऐसे आगमजनित ज्ञान से कोई भी मनुष्य सिद्ध नहीं होगा, वैसे ही ज्ञान और श्रद्धान से सहित भी कोई यदि संयम से शून्य है, तो भी वह मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकेगा। क्योंकि जो असंयत है, उसका आगम कथित आत्मा की प्रतीतिरूप श्रद्धान अथवा आगम में कथित आत्मतत्व की अनतिरूप ज्ञान भी क्या कर सकेंगे ? इस लिये संयम से रहित श्रद्धान से अथवा ज्ञान से सिद्धि नहीं है । अत: आगमज्ञान, तत्त्वार्थश्रद्धान और संयत अवस्था-सकलचारित्र ये तीनों यदि एक साथ नहीं हैं, तो उनके 'मोक्षमार्ग' नहीं बनता।" __ इस कथन से छठे गुणस्थान से मुनियों के ही मोक्षमार्ग होता है, इसके नीचे नहीं है । अथवा देशनती श्रावकों के भी मोक्षमार्ग माना है। जैसा कि श्रीजयसेनाचार्य ने पंचास्तिकाय ग्रन्थ की दीका में कहा है---- ___ "वीतराग सर्वज्ञप्रणीत जीवादि पदार्थों का सम्यक् श्रद्धान और ज्ञान ये दोनों रत्न गृहस्थ और तपोधनमुनि इन दोनों में समान हैं। किंतु जो चारित्र है, वह मुनियों के तो आचारग्रन्थ आदि चारित्रग्रन्थों में कहे गये मार्गरूप से छठे और १. प्रवचनसार, गा० २३७, पृ० ५६८ ।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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