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________________ नियमसार-प्राभृतम् अस्मान्निर्णायते चतुर्दशमगुणस्थानावसानं यावद् मार्गस्ततः परं मार्गफलमिति। सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणां समुदय एव मार्गो न व्यस्तानाम् । उक्तं च भट्टाकलदेवैः "त्रयमेतत् संगत मोक्षमागी कशी ii या इति । नहि त्रितयमन्तरेण मोक्षप्राप्तिरस्ति रसायनवत् । तथा न मोक्षमार्गज्ञानादेव मोक्षणाभिसम्बन्धो दर्शनचारित्राभावात् । न च श्रद्धानादेवः मोक्षमार्गज्ञानपूर्वक्रियानुष्ठानाभावात् । न च क्रियामात्रादेव; ज्ञानश्रद्धानाभावात् । यतः क्रिया ज्ञानश्रद्धानरहिता निःफलेति । यदि च ज्ञानमात्रादेव क्वचिदर्थसिद्धिर्दष्टा साभिधीयताम् ? न चासावस्ति । अतो मोक्षमार्गत्रितयकल्पना ज्यायसीति ।" प्रवचनसारशास्त्रेऽपि तथैव दृश्यते इस कथन से यह निर्णीत होता है कि चौदहवें गुणस्थान के अन्त तक 'मार्ग' है और उसके आगे मार्ग का फल है । क्योंकि सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र इन तीनों का समुदाय ही मार्ग है, इनमें से एक-दो का कम होना नहीं है। श्री भट्ट अकलङ्कदेव ने भी कहा है "ये तीनों ही मिलकर मोक्षमार्ग हैं, एक-एक अथवा दो-दो से मोक्ष मार्ग नहीं है । क्योंकि इन तीनों के बिना मोक्षप्राप्ति नहीं है, रसायन के समान । मोक्षमार्ग रूप ज्ञान से हो मोक्ष का सम्बन्ध नहीं है, क्योंकि दर्शन और चारित्र का अभाव है । श्रद्धान मात्र से भी मोक्ष नहीं है, क्योंकि मोक्षमार्ग का ज्ञान और उस पूर्वक क्रिया के अनुष्ठान का अभाव है। क्रिया-मान से भी मोक्ष नहीं है क्योंकि उसमें ज्ञान और श्रद्धान का अभाव है । बात यह है कि ज्ञान और श्रद्धान से रहित क्रिया निष्फल ही है। यदि आपने कहीं पर जानने मात्र से ही प्रयोजन की सिद्धि देखी हो तो कहिए ? अर्थात् ज्ञान मात्र से कहीं पर भी कार्य की सिद्धि नहीं देखी जाती है अतः मोक्षमार्ग के तीन अवयवों की कल्पना-व्यवस्था उत्कृष्ट ही है।" प्रवचनसार ग्रन्थ में भी ऐसा ही देखा जाता है." १. तत्त्वार्थवात्तिक, अ० १, सूत्र १ ।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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