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________________ नियमसार- प्राभूतम् ts प्रमत्ताप्रमत्त गुणस्थानयोग्यं पचमहाव्रतपञ्चसमितित्रिगुप्तिषडावश्यकादिरूपम्, गृहस्थानां पुनरूपासकाध्ययनग्रन्थविहित मार्गेण पञ्चमनुणस्थानयोग्यं दानशील पूजोपवासादिरूपं दार्शनिकवतिकायेकादशनिलयरूपं वा इति व्यवहारमोक्षमार्गलक्षणम्" ।" अत्रापि श्री अमृतचन्द्रसूरिभिर्यतीनामेव मोक्षमार्गो वर्णितो न तु गृहस्थानाम् । एतस्माल्लक्ष्यते-असंयतसम्यग्दृष्टीनां मोक्षमार्गे नास्ति, चारित्राभावात् । अस्ति चेत्; उपचारेणैच । किं च ये केचित् स्वयं श्रद्धानशून्या रत्नत्रयमध्ये केनचिदेhe द्वाभ्यां वा मार्गो मन्यन्ते ते मिथ्यादृष्टयः । ये च त्रयाणां समुदय एव मोक्षमार्ग इति मत्वा श्रद्दधते ते सम्यग्दृष्टयः । " अथवा प्रमत्ताप्रमत्तमुनीनामपि मोक्षमार्गो व्यवहारनयेनैव परम्परया कारणत्वात् । निश्चयनयेन तु अयोगिनां चरमसमयवर्ति रत्नत्रयपरिणामो मोक्षमार्गः, सातवे गुणस्थान के योग्य होता है जो कि पांच महाव्रत, पाँच समिति, तीन गुप्ति और छह आवश्यक किया आदि रूप है । पुनः गृहस्थों का चारित्र उपासकाध्ययन नामक ग्रंथ में कहे गये मार्ग के अनुसार पंचमगुणस्थान के योग्य होता है, जो कि दान, शील, पूजा और उपवास इन चार धर्मरूप है अथवा दर्शन, व्रत आदि ग्यारह प्रतिमा से ग्यारहस्यानरूप है । यह सब व्यवहार मोक्षमार्ग का लक्षण है ।" इस पंचास्तिकाय ग्रन्थ में इसी गाथा की टीका करते हुए श्री अमृतचंद्र सूरि ने यहाँ पर भी यतियों के ही मोक्षमार्ग कहा है, गृहस्थों के नहीं ! इन प्रकरणों से यह बात लक्षित होती है, कि असंयत सम्यग्दृष्टियों के मोक्षमार्ग नहीं है, क्योंकि उनके चारित्र का अभाव है और यदि मानों भी तो उपचार से ही है । दूसरी बात यह है कि जो स्वयं तो श्रद्धान से शून्य हैं और इन रत्नत्रय में से किसी एक से या किन्हीं भी दो से मोक्षमार्ग मानते हैं, वे मिथ्यादृष्टि हैं और जो 'इन तीनों का समुदाय ही मोक्षमार्ग है' ऐसा मान कर श्रद्धान करते हैं, वे सम्यग्दृष्टि हैं । अथवा छठे सातवें गुणस्थानवर्ती प्रमत्त अप्रमत्त मुनियों के भी मोक्षमार्ग व्यवहारनय से ही है क्योंकि वह परंपरा से कारण है । निश्चयनय से तो अयोग १. पंचास्तिकाय गाया १६० पू० ३७१ । . २
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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