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________________ नियमसार-प्राभूतम् अस्थ नियमसारग्रन्थस्य सार्थकमिदं नामकरणम् । प्रमत्तसंयतगुणस्थानात् प्रारभ्यायोगफेवलिपर्यन्ताः संयता नियमसारा भवन्ति क्षीणकषायान्ता बा, भेदाभेदरत्नत्रयानुष्ठानत्वाद् नियमशब्देन वाव्यस्याधारत्वाच्च । तहिं मुनीनामेवास्य ग्रन्थस्याध्ययनेऽधिकारो न तु देशतिनामसंयतसम्यग्दृष्टीनां च ? सत्यमुक्तं भवता, मुख्यवृत्त्या तु संयतानामेव किन्तु गौणवृत्त्या तवधस्तनगुणस्थानतिनामपि । किं च, सागारा अपि तद्धर्मरागिणः सन्त्येव । उन्तं च सागारधर्मामृते अथ नत्वाहतोषणचरणान् श्रमणानपि । तद्धर्मरागिणां धर्मः सागाराणां प्रणेष्यते ॥१॥ अन्यच्च निश्चयचारित्रप्रधानमिदं शास्त्रमधीस्य श्रावकरपि श्रद्धातव्यम्, कि—सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्लीरित्र ही मोक्षमार्ग है। यह बिनने कहा है? चार ज्ञानधारी गणधरदेवों ने कहा है, यहाँ ऐसा समझना । यह इस 'नियमसार' ग्रन्थ का सार्थक नाम है । प्रमत्तसंयत गुणस्थान से लेकर अयोगकेवली गुणस्थान पर्यंत सभी संयत-मुनिराज 'नियमसार' होते हैं। अथवा छठे गुणस्थान से लेकर क्षीणकषाय-नामक बारहवें गुणस्थान तक के सभी साधु नियमसार हैं, क्योंकि वे भेद-अभेद रत्नत्रय का अनुष्ठान कर रहे हैं और नियम शब्द से वाच्य विषय के आधारभूत हैं। शंका-तब तो मुनियों को ही इस ग्रन्थ को पढ़ने का अधिकार है, किन्तु देशव्रती और असंयत सम्यग्दृष्टियों को नहीं है ? ___ समाधान—आपने ठीक ही कहा है, मुख्य रूप से तो मुनियों को ही अधिकार है, किन्तु गौण रूप से छठे गुण स्थान से नोचे वाले श्रावक भी पढ़ सकते हैं | दूसरी बात यह है कि सागार-गृहस्थ भी मुनि धर्म के अनुरागी ही हैं। सागारधर्मामृत में कहा भी है अहंतदेव और परिपूर्ण चारित्रधारी मुनियों को नमस्कार कर उनके धर्म के अनुरागो ऐसे श्रावकों का धर्म मैं कहूँगा। दूसरी बात यह है कि निश्चय चारित्र की प्रधानता बाले इस शास्त्र को १. सागारधर्मामृत।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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