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________________ नियमसार-प्राभृतम् सप्लकेन निश्चयप्रतिक्रमणप्रत्याख्यानालोचनाप्रायश्चित्तपरमसमाधिपरमभक्त्यावश्यफनियुक्तिसंज्ञाभिः निश्चयचारित्रप्ररूपणा, इत्येकादशाधिकारः मार्गप्रतिपादनम् । तत्पश्चात् निश्चयचारित्रस्य फलभूता एकोनत्रिंशत्सूत्रक्शिमाधिकारेण परमार्हन्त्यसिद्धावस्थाप्रतिपादनपरा निर्वाणप्ररूपणा । इति समुदायेन समाशोत्युत्तरशतसूत्रदिश महाधिकारा ज्ञातव्याः । तत्रादौ जीवाधिकारे पाठक्रमेणान्तराधिकाराः कथ्यन्ते । तद्यथा-'मिऊण' इत्यादिनमस्कारसत्रमादि कुन्ता चतुःसूत्राणि नियमशब्दार्थपीठिकाव्याख्यानमुख्यत्वेन, तदनन्तरं 'अतागम' इत्यादिसूत्रमादि कुत्या सूत्रपञ्चकं सम्यक्त्वलक्षणतविषयात गमतपयनिरूपणमुख्यत्वेन, पुनश्च दशसूत्राणि गुणपर्ययसहितजीवद्रव्यप्रतिपावनप्रधानत्वेन कथयन्तीति त्रिभिरन्तराधिकारैः सम्यक्त्यस्य विषयभूते प्रथमजीवाधिकारे समुदायपातनिका। व्यवहाररत्नत्रय के अवलम्बन से जो साध्य हैं ऐसे निश्चयप्रतिक्रमण, निश्चय प्रत्याख्यान, निश्चय आलोचना, निश्चय प्रायश्चित्त, परमसमाधि, परमभक्ति और निश्चय आवश्यकनियुक्ति इन नामों वाले निश्चय चारित्र का वर्णन बयासी गाथाओं द्वारा सात अधिकारों में किया जावेगा। इन ११ अधिकारों तक मार्ग का प्रतिपादन है। तत्पश्चात् निश्चयचारित्र के फलस्वरूप ऐसी अर्हन्त अबस्था और सिद्ध अवस्था का वर्णन उनतीस गाथाओं द्वारा अंतिम बारहवें अधिकार में करते हुए निर्वाण का कथन किया जावेगा। इस प्रकार समुदाय से एक सौ सत्तासी (१८७) गाथाओं के द्वारा बारह महा अधिकार कहे गये हैं, ऐसा जानना। इन बारह अधिकारों में से अब पहले जीवाधिकार में पाठ क्रम से अन्तराधिकार कहते हैं । उसका स्पष्टीकरण---‘ण मिऊण' इत्यादि नमस्कार गाया को आदि लेकर चार गाथा तक नियम शब्द का अर्थ करते हुए पीठिका व्याख्यान की मुख्यता है। इसके बाद 'अत्तागम' इत्यादि गाथासूत्र को आदि करके पाँच गाथासूत्रों में सम्यग्दर्शन का लक्षण और उसके विषयभूत आप्त, आगम तथा तत्त्वों के कथन को मुख्यता है । पुनः दस गाथायें गुण पर्यायों सहित जीवद्रव्य की प्रधानता को कहती हैं। इस प्रकार इन तीन अंतराधिकारों से सम्यग्दर्शन और उसके विषयभूत जीवाधिकार में समुदाय पातनिका हुई। अब इस नियमसार ग्रन्थ के प्रारम्भ में गाथासूत्र के पूर्वार्ध द्वारा निर्विघ्न
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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