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________________ नियमसार- प्राभृतम् श्री कुन्दकुन्दयोगवस हे भ्रम 1 स्थेयात्तावद्धि यावच्च स्वात्मसिद्धिनं मे भवेत् ॥४॥ भेवाभेदत्रिरत्नानां क्त्यर्थमचिरान्मयि । सेयं नियमसारस्य वृत्तिर्विव्रियते मया ॥३५॥ अथ निर्विकारशुद्धात्मतत्वप्रतिपादन मुख्यत्वेन निरवद्यनियमानुष्ठाननिपुण विनेयजनप्रतिबोधनार्थं भगवद्भिः श्रीकुन्दकुन्द देवै निर्मितेऽस्मिन् नियमसारप्राभृतग्रन्थे यथाक्रमेणाधिकारशुद्धिपूर्वकं पालनिकासहितं व्याख्यानं कथ्यते । तद्यथा— प्रथमतस्तावद् 'णमिऊण जिणं वीरं' इत्यादिपाठक्रमेण नियमशब्दवाच्यरत्नत्रयस्यावयवं सम्यक्त्वं तस्य विषयभूतजीवाजीवद्रव्यप्रतिपादनपरैः सप्तत्रिंशत्सूत्रैरधिकारद्वयेन व्यवहारसम्यक्त्वप्ररूपणा । ततः परम् अष्टादशसूत्ररेकेनाधिकारेण सम्यग्ज्ञानप्ररूपणा । तदनु एकविंशति सूत्रैश्चतुर्याधिकारेण व्यवहारचारित्रप्ररूपणा । तदनन्तरं व्यवहाररत्नत्रयावष्टम्भेन साध्या द्वयशीतिसूत्रैरधिकार मेरे हृदयकमल में श्री कुन्दकुन्द योगिराज तब तक विराजमान रहें, जब तक कि मुझे आत्मा की सिद्धि न हो जावे ||४|| मुझमें भेदरत्नत्रय और अभेदरत्नत्रय शीघ्र ही व्यक्त हो, इसी उद्देश से मेरे द्वारा यह 'नियमसार' ग्रन्थ की तात्पर्यवृत्ति टीका लिखी जा रही है ॥५॥ अब निर्विकार शुद्ध आत्मतत्त्व को प्रतिपादन करने की मुख्यता रखते हुए, निर्दोष रत्नत्रय के पालन में निपुण ऐसे शिष्यों को प्रतिबोधित करने हेतु भगवान् श्रीकुंदकुंददेव के द्वारा निर्मित इस 'नियमसार' नामक प्राभृत ग्रन्थ में यथाक्रम से अधिकारों की शुद्धिपूर्वक भूमिकासहित अर्थात् प्रत्येक अधिकारों की भूमिका बताने वाला यह व्याख्यान किया जा रहा है । उसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है इस ग्रन्थ में सर्वप्रथम " मिऊण जिणं वीरं" इत्यादि गाथा पाठ के क्रम करेंगे। उस रत्नत्रय का अजीव इन दो द्रव्यों को अधिकारों से व्यवहार से 'नियम' शब्द से वाच्य जो रत्नत्रय है, उसका वर्णन एक अवयव जो सम्यक्त्व है, उसके विषयभूत जीव और प्रतिपादित करनेवाली ऐसी सैंतीस गाथाओं द्वारा दो सम्यक्त्व का वर्णन किया जावेगा। इसके बाद अठारह गाथाओं द्वारा एक अधिकार- तृतीय अधिकार से सम्यग्ज्ञान का वर्णन किया जावेगा । पुनः इक्कीस गाथाओं द्वारा चौथे अधिकार से व्यवहारचारित्र का वर्णन होगा । इसके बाद
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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