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________________ २३१ नियमसार-प्राभृतम् त्वेन "उत्तमअळं आदा" इत्यादिके द्वे गाथासूत्र वर्जूते । अनंतरम् अस्याधिकारस्योपसंहाररूपेण "पडिकमणणामधेये" इत्यादिनकेन गाथासूत्रेण द्रव्यप्रतिक्रमणस्य माहात्म्यं वर्णयन्ति आचार्याः, इति त्रिभिरन्तराधिकारैः समुदायपातनिका सूनिता भवति । अधुनायं जीवः मनुष्यो देवो वा ? इति प्रश्ने सति श्रीकुन्दकुन्ददेवा उत्तरं प्रयच्छन्ति णाहं णारयभावो तिरियत्थो मणुवदेवपज्जाओ। कत्ता ण हि कारइदा अणुमंता व कत्तीणं ॥७७॥ स्थाद्वादचन्द्रिका टीका ___ अहं णारयभावो तिरियत्थो मणुवदेवपज्जाओ कत्ता ण-अत्र अन्यकर्तारः उत्तमपुरुषप्राधान्यं कृत्वा विभावभावानां कर्तृत्वादिकं निराकुर्वन्ति । अहं नारकपर्यायः तिर्यकपर्यायो मनुष्यपर्यायो देषपर्यायो वा न अस्मि । न एषां पर्यायाणां कर्ता भवामि । ण हि कार इदा-न कारयिता भवामि । कत्तीणं णेव अणुमंता-फर्तणां कर्वतां पुरुषाणां नैव अनुमन्ताअहम्, शुद्धनिश्चयनयेन शुद्धचैतन्यधातुनिर्मितत्वात् । च्यवहारनयेन गतिशुद्धात्म-ध्यान ही प्रतिक्रमण है--इस कथन की मुख्यता से "उत्तम अर्द्ध आदा" इत्यादि दो गाथासूत्र हैं । अनन्तर इस अधिकार के उपसंहार रूप से "पडिकमणणामधेये" इत्यादि एक गाथासूत्र से आचार्यदेव द्रव्य-प्रतिक्रमण का माहात्म्य वर्णित करेंगे। इस प्रकार इन तीन अन्तराधिकारों द्वारा यह समुदायपातनिका सूचित की गयी है। ____ अब 'यह जीव मनुष्य है, अथवा देव' ऐसा प्रश्न होने पर श्रीकुन्दकुन्ददेव उत्तर देते हैं अन्वयार्थ—(अहं णारयभावो तिरियत्थो मणुवदेवपज्जाओ ण) मैं नारकी, तिर्यच, मनुष्य अथवा देवपर्याय-धारी नहीं हूँ। (कत्ता कारइदा ण हि णेव कत्तीणं अणुमंता) में इनका कर्ता और कराने वाला नहीं हूँ और न करते हुए जनों की अनुमोदना करने वाला है। टोका-यहाँ पर ग्रन्थकार श्रीकुन्दकुन्ददेव उत्तम पुरुष को प्रधान करके विभाव भावों के कर्तृत्व का निराकरण कर रहे हैं । मैं नारकोपर्याय, तिर्यचपर्याय, मनुष्यपर्याय अथवा देवपर्यायरूप नहीं हूँ। न इन पर्यायों का कर्ता हूँ, न करने वाला हैं और न करते हुए जनों को अनुमोदना करने वाला ही हूँ। क्योंकि मैं शुद्धनिश्चयनय से शुद्ध चैतन्य धातु से निर्मित हूँ। व्यवहारनय से गतिनाम कर्म के उदय
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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