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________________ नियमखार-प्रामृतम् २२९ चारित्रस्योपसंहाररूपेण एका गाथा गता । इति षड्भिः गाथासूत्रैः चतुर्थोऽन्तराधिकारः समाप्तः । अत्र नियमसारग्रन्ये चतुर्थे सम्यक्चारित्राधिकार पूर्वकथितक्रमेण पंचभिः सूत्र: पंच महाव्रताख्यानम्, तदनु पंचभिः सूत्रः पंचसमितिनिरूपणम्, अनंतरं पंचभिः सूत्रेभनयमाश्रित्य त्रिगुप्तिव्याख्यानम् तत्पश्चात् एकेन सूत्रेण व्यवहाररत्नत्रय - स्योपसंहारश्चेति एकविंशतिगाथासूत्रैः चत्वारोऽन्तराधिकारा गताः । इति श्रीभगवत्कुन्दकुन्दाचार्य प्रणीतनियमसारप्राभूतग्रन्थे ज्ञानमत्यार्थिकाकृतस्याद्वादचन्द्रिकानामटोकायां व्यवहारमोक्षमार्गमहाधिकारमध्ये सम्यक्चारित्रापरनामधेयो व्यवहारचारित्रनामा चतुर्थोऽधिकारः समाप्तः । पाँच गाथायें हुईं, अनंतर व्यवहारचारित्र के उपसंहाररूप से एक गाथा हुई । इन छह गाथासूत्रों द्वारा यह चौथा अन्तराधिकार समाप्त हुआ । इस नियमसार ग्रन्थ में चतुर्थ सम्यक्चारित्र अधिकार में पूर्वकथित क्रम से पांच गाथाओं द्वारा पाँच महाव्रत का व्याख्यान किया गया है, पुनः पाँच गाथाओं द्वारा पांच समिति का निरूपण है, इसके बाद पांच गाथा सूत्रों द्वारा दोनों नयों का आश्रय लेकर तीन गुप्तियों का वर्णन है, इसके पश्चात् एक गाथासूत्र द्वारा व्यवहाररत्नत्रय का उपसंहार है, इस तरह इक्कीस गाथा सूत्रों से ये चार अन्तराधिकार पूर्ण हुए हैं । इस प्रकार भगवान् श्री कुन्दकुन्दाचार्य प्रणोत नियमसार - प्राभृत ग्रन्थ में आर्यिका ज्ञानमती कृत स्याद्वादचंद्रिका नाम की टीका में व्यवहार मोक्षमार्ग महाधिकार के मध्य सम्यक्चारित्र अपरनामवाला व्यवहारचारित्र नाम का चौथा अधिकार समाप्त हुआ ।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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