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________________ २२८ नियमसार-प्राभृतम् निष्पन्नभेदात् । तत्र ये मलोत्तरगुणगलनतत्परा अभावकाशादियोगसाधनकुशला सिहोगिनो योरोगसीहावित गनिहामनसः, कदाचित् चारद्धिबलेन पंचमेरूणां नंदनसौमनसादिघनेषु विहरन्तः सन्तः क्वचित् निराकुलस्यानेषु स्थित्वा ध्यानामृतं पिबन्ति, त एव मुनयः निश्चयरत्नत्रयाख्याभेदसंयमस्य पात्रीभवन्ति, न चान्ये । एष एव क्रमः तीर्थंकरादिमहापुरुषरध्यात्मयोगिफुन्दकुन्ददेवश्च न केवलं कथितः, स्वयमेवानुपालितश्च । तात्पर्यमेतत्-ये जना व्यवहाररत्नत्रयमंतरेण निश्चयरत्नत्रयं लब्धमोहन्ते, ते जिनशासनबहिर्मुखाः स्वेषां वंचका एष । इति ज्ञात्वा सर्वतात्पर्येण भेवचारित्रं पालयित्वा, भो भव्याः ! यूयं सिद्धिपत्तनमासन्नं कुरुत । येषां शासनं अद्यावधिपयंतं अविच्छिन्नतया जयति, जगता मे च शान्तये नमस्तस्मै शांतिनाथजिनेश्वराय ॥७६॥ एवं भक्तिमार्गप्राधान्येन पंचगुरुकथनपरा पंच गाथा गताः, तदनु व्यवहार जो मूल और उत्तर गुणों के पालन करने में तत्पर हैं, अभावकाश आदि योगों के सावन में कुशल हैं, वे निष्पन्न योगी हैं। वे घोर उपसर्ग और परीषहों के आ जाने पर भी महामना रहते हैं--धैर्यवान् रहते हैं, कदाचित् चारण ऋद्धि के बल से पंच मेरुओं के नंदन, सौमनस आदि बनों में विहार करते हुए कहीं निराकुल स्थानों पर स्थित होकर ध्यानरूपी अमृत का पान करते हैं। वे ही मुनिराज निश्चयरत्नत्रय नामवाले इस अभेद संयम के पात्र होते हैं, अन्य नहीं। यही क्रम तीर्थंकर आदि महापुरुषों ने तथा अध्यात्मयोगी श्रीकुन्दकुन्ददेव ने केवल कहा ही नहीं है, किंतु स्वयमेव इसी क्रम का पालन किया है, अर्थात् इसी क्रम से चारित्र को धारण किया है। यहाँ तात्पर्य यह हुआ कि जो लोग व्यवहार रत्नत्रय के बिना निश्चयरत्नत्रय को प्राप्त करना चाहते हैं, वे जिनशासन से बहिर्मुख, अपनी वेचना करने वाले ही हैं। ऐसा जानकर सर्व तात्पर्य से भेदचारित्र का पालन करके हे भव्यजीवों! तुम लोग सिद्धिपतन को निकट कर लेबो। जिनका शासन आजतक अविच्छिन्नरूप से जयशील हो रहा है, जगत की और मेरी शांति के लिए उन शांतिनाथ जिनेश्वर को मेरा नमस्कार होवे ॥७६।। इस प्रकार भक्तिमार्ग को प्रधानता से पंचपरमगुरु का वर्णन करने वाली
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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