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________________ नियमसार-प्राभृतम् इत्थं आप्तागमसत्वानां श्रद्धानं, विपरीताभिनिवेशविजितं श्रद्धानं, चलमलिनागाढवोषरहितं श्रद्धानं च इति विविध लक्षणं सम्यग्दर्शनस्य कथितं श्रीकुन्दकुन्ददेवैः। कषायप्राभृतमहासिद्धान्तग्रन्थस्य कर्तृणां श्रोगुणथरमहासुरीणां चायमभिप्राय: माइट्टी होने पवसण नियममा इ रमाई ! सद्दहवि असम्भावं अजाणमाणो गुरुणिओगा ॥१०॥ अस्या गायाया उत्तरार्धम् अन्यत्रापि एवमेव दृश्यते । श्रीनेमिचंद्रसिद्धांतचक्रतिवेवैः लब्धिसारे प्रोक्तम् । तथाहि सम्मुक्ये चलमलिणमगाढं सद्दहदि तच्चयं अत्थं । सद्दहदि असदभावं अजाणमाणो गुरुणिओगा ॥१०५॥ सुत्तादो से सम्म दरसिम्जतं अदा ण सद्दहदि । सो चेव हवइ मिच्छाइट्ठी जीवो तदा पहुवी ॥१०॥ - आप्त आगम पदार्थों का श्रद्धान, विपरीत अभिप्राय से रहित श्रद्धान्त और चल मलिन अगाढ़ दोषरहित श्रद्धान इस तरह श्रीकुन्दकुन्ददेव ने तीन प्रकार के सम्यग्दर्शन के लक्षण किये हैं। कषायप्राभूत महासिद्धान्त ग्रन्थ के कर्ता श्री गुणधर महाआचार्य का भी अभिप्राय देखिये 'सम्यग्दृष्टि जीव नियम से उपदिष्ट प्रवचन का श्रद्धान करता है, कदाचित् अज्ञायमान गुरु के नियोग से असत् पदार्थों का भी श्रद्धान कर लेता है।' इस गाथा का उत्तरार्ध अन्य ग्रन्थों में भी इसी प्रकार है । श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती ने भी लब्धिसार में कहा है सम्यक्त्व प्रकृति के उदय में चल मलिन अगाढ़ दोष सहित पदार्थों का श्रद्धान करता है। कदाचित् अज्ञायमान गुरु के नियोग से असत् पदार्थों का श्रद्धान भी कर लेता है। पुनः यदि अन्य कोई गुरु सूत्र में उसे समीचीन अर्थ दिखला देवे तो भी वह जब उसपर श्रद्धान नहीं करता है तो वह उसी समय से मिथ्यादृष्टि हो जाता है। १. सायपाहुड ग्रन्थ । २, लम्धिसार । २१
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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