SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५९ नियमसार-प्राभूतम् विभावस्थानाधिसंहननपर्यन्ताः सर्वेऽपि विभावभावाः सन्ति, तथापि भध्या अभव्याय नित्यनिगोवा इतरनिगोदाः एकेन्द्रियादि-पंचेन्द्रियान्ता नारकाः तिर्यञ्चो मनुष्या देवाश्च सकला अपि जीवराशयः शुद्ध नयेन सिद्धस्वभावा एव । __ ननु जीवद्रव्यं त्रिकालं ध्रुवशुद्ध तस्य गुणपर्याया एब अशुद्धाः, अतो व्रव्याफिनयेन जीबद्रव्यं शुद्धं पर्यायाथिकनयेनाशुद्धमिति वक्तव्यम् ? तन्न, कथम् ? आर्षे नैतत् श्रूयते, परं “गुणपर्ययवव व्यं” इति बचना गुणपर्ययसमूहमेव द्रव्यमिति आयातम् । पुनः द्रव्यं तु त्रिकालं शुद्धं गुणपर्यायाश्च अशुद्धाः कथमेतत् संभवेत् ? गुणपर्यायमंतरेण द्रव्यस्यास्तित्वमेव न सिद्धधति । अतः यदा येन नयेन वा द्रव्यं शुद्धम्, तदा तेन नयेन वा गुणपर्याया अपि शुद्धाः। ___उक्तं च--“कर्मोपाधिनिरपेक्षः शुलद्रव्याधिकः, यथा संसारी जीवः सिद्धसदृक शुखात्मा ॥४॥ संहनन पर्यंत सभी विभाव भाव हैं। फिर भी भव्य-अभव्य, नित्य निगोद, इतर निगोद, एकेन्द्रिय, दो इन्द्रिय, तीन इंद्रिय, चार इंद्रिय और पंचेद्रिय, नारकी, तिर्यंच, मनुष्य और देव, कुल मिलाकर जितनी भी जीवराशि हैं, शुद्धनय की अपेक्षा सभी सिद्धस्वभाव हो । शंका-~~-जीवद्रव्य तो त्रिकाल में ध्रुव शुद्ध है, उसकी गुणपर्यायें ही अशुद्ध हैं । इसलिये द्रव्याथिकनय से जीवद्रव्य शुद्ध है और पर्यायाथिक नय से अशुद्ध है, ऐसा कहना चाहिए ? समाधान-ऐमा नहीं है, शंका-क्यों ? समाधान-आर्ष ग्रन्थों में ऐसा नहीं सुना जाता है, किंतु “गुण और पर्यायों वाला ही द्रव्य है'' ऐसा सुत्र का कथन है। इसका अर्थ है कि गुणपर्यायों का समूह हो द्रव्य है । पुनः द्रव्य तो तीनों काल शुद्ध रहे और उसकी गुणपर्यायें अशुद्ध रहें, यह कैसे सम्भव है ? क्योंकि गुणपर्यायों के बिना तो द्रव्य का अस्तित्व ही सिद्ध नहीं होगा। इसलिए जब अथवा जिस नय से द्रव्य शुद्ध है, तब अथवा उसी नय से गुणपर्यायें भी शुद्ध हैं। कहा भी हैकर्मों की उपाधि से निरपेक्ष नित्य शुद्ध द्रव्याथिक नय है, जैसे संसारी
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy