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________________ नियमसार- प्राभृतम् यदीने संसारिणः सिद्धसदृशाः तर्हि किकिगुणविशिष्टा इति प्रश्ने प्रत्युत्तरं प्रयच्छत्याचार्याः असरीरा अविणासा अनिंदिया णिम्मला विसुद्धप्पा | जह लोयग्गे सिद्धा तह जीवा संसिदी णेया ॥ ४८ ॥ जहलो सिद्धा वह हिदी जीवा गेया- यथा लोकाग्रे सिद्धा राजन्ते तथा संसृतौ संसारे जीवाः ज्ञेयाः संसारिणो जीवाः ज्ञातव्या इति । कथंभूतास्ते सिद्धाः ? असरीरा - अशरीराः, औदारिकादिपञ्चविधशरीररहिताः ज्ञानशरीराश्च । पुनः कथंभूताः ? अविणासा- अविनाशाः, अविनश्वराः नरनारकाविरूपेण जन्ममरणाभावात् शाश्वता: नित्याः । पुनरपि कथंभूताः ? अणिदिया- अनिन्द्रिया अतीन्द्रियाः वा, क्षायोपशमिकजन्यभावेन्द्रियाभावात् आत्मोत्थसकल विमल केवलज्ञान वर्शनलोचनाभ्यां युगपत् लोकालोकव्यापि सकल पदार्थावलोकनसमर्थाः अतीन्द्रियाः । पुनः किस्वरूपा: १ निम्मला - निर्मलाः द्रव्यभावकर्ममलैः रहिताः । पुनः कीदृशाः ? विसुद्धप्पा - विशुद्धात्मानः रागद्वेषादिविभावभावैः रहिताः विशेषेण शुद्धाश्च । ૨ यदि ये संसारी जीव सिद्धसदृश हैं, तो वे किन किन गुणों से विशिष्ट हैं ? ऐसा प्रश्न पूछने पर आचार्य उत्तर देते हैं— अन्वयार्थ - ( असरीरा अविणासा अणिदिया णिम्मला विसुद्धप्पा) अशरीरी, अविनाशी, अनिन्द्रिय, निर्मल और विशुद्धात्मा (सिद्धा जह लोयो) सिद्ध भगवान् जैसे लोक के अग्रभाग पर हैं, (तह संसिदी जीवा णेया) वैसे ही संसार में जीव हैं ॥४८॥ टीका - जिस प्रकार से लोक के शिखर पर सिद्ध विराजमान हैं, उसी प्रकार से संसारी जीव हैं, ऐसा जानना चाहिये । शंका -- सिद्ध भगवान् कैसे हैं ? - समाधान — सिद्ध भगवान् ओदारिक आदि पाँच प्रकार के शरीर से रहित हैं और ज्ञानशरीरी हैं। अग्निश्वर हैं- नर नारक आदि रूप से जन्म-मरण का अभाव होने से वे शाश्वत - नित्य हैं । क्षायोपशमिक जन्म भावेन्द्रिय और द्रव्येन्द्रियों का अभाव होने से और आत्मा से उत्पन्न सकल विमल केवल ज्ञानदर्शन इन दो नेत्रों से एक लोक- अलोक में रहने वाले समस्त पदार्थों का अवलोकन करने में समर्थ हैं । इसलिये अनिन्द्रिय या अतीन्द्रिय हैं। द्रव्यकर्म और भावकर्म मल से रहित निर्मल हैं और रागद्वेषादि विभाव भावों से रहित, विशेषतया शुद्ध होने से विशुद्धात्मा हैं ।
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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