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________________ नियमसार:प्राभूतम् जारिसिया सिद्धप्पा-यादेशाः सिद्धात्मानः । भवमल्लिय जीव तारिसा होंति-भवमालीनाः जीवाः तादृशाः भवन्ति । जेण-पेन कारणेन नयेन वा सावृशाः तेनैव कारणेन नयेन वा जरमरणजम्ममुक्का अठ्ठगुणालंकिया-जरामरणजन्ममुक्ताः अष्टगुणालंकृताश्च सन्ति इति । ये केचित् संसारिजीवाः पूर्व संसारावस्थायां फचपरावर्तनशीलाः अपि कदाचित् काललध्यादिबलेन सम्यक्त्वं समुत्पाद्य सम्यग्जानिनो भूत्वा अणुव्रतादिश्रायकधर्ममनुपाल्याभ्यासबलेन निजात्मशक्ति परिवर्तयन्तः निजमुद्रां धृत्वा ध्यानामृतं पपुः, त एव कारणपरमात्मस्वरूपेण परिणताः सन्तः स्वयमेव अर्हत्सिगुरूपेण कार्यपरमात्मानो बभूवुः, ते जन्मजरामरणविप्रमुक्ताः सम्यक्त्वाधष्टगुणयुक्ताः जाताः । ते सिद्धपरमेष्ठिनो यादृशाः तादृशाः एव सर्वेऽपि संसारिणो जीवाः । पुनः कयं संसारमोक्षयोर्यवस्था ? कथं च लोके नानाविषाः जीवाः दृश्यन्ते ? यच्च प्रत्यक्षेण दृश्यते तत्कथं वा लोपयितुं शक्यते ? सत्यमेव; किन्तु येन शुद्धनयेन ते संसारिजीया: सिद्धसदृशतः शुद्धाः, तेन नयेन संसारमोक्षयोर्यवस्था नास्ति, तेन टीका-जैसे सिद्ध भगवान हैं संसारी जीब वैसे ही हैं, जिस कारण से या जिस नय से वे वैसे हैं, उसी कारण से या उसी नय से वे जरा मरण और जन्म से रहित हैं तथा आठ गुणों से अलंकृत हैं। जिस किसी भी संसारी जीव ने पूर्व में संसार अवस्था में पाँच परावर्तन करने वाले होते हुए भी कदाचित काललब्धि आदि के बल से सम्यक्त्व को उत्पन्न करके, सम्यग्ज्ञानी होकर अणुव्रत आदि श्रावकधर्म का अनुपालन करके अभ्यास के बल से अपनी आत्मशक्ति को बढ़ाते हुए जिनमुद्रा को धारण करके ध्यानरूपी अमृत पिया है, वे ही कारण परमात्मा स्वरूप से परिणत हए स्वयं ही अहंत सिद्धरूप से कार्य परमात्मा हुए हैं। वे जन्म जरा मरण से विमुक्त होते हुए सम्यक्त्व आदि आठ गुणों से युक्त हुए हैं। बे सिद्ध परमेष्ठी जेसे हैं, वैसे ही सभी संसारी जीव हैं। शंका—पुनः संसार और मोक्ष की व्यवस्था कैसे है ? और लोक में अनेक प्रकार के जीव कैसे हैं ? अथवा जो कुछ प्रत्यक्ष से दिख रहा है, उसका लोप करना कैसे शक्य है ? समाधान-सच है, किन्तु जिस शुद्धनय से बे संसारी जीव सिद्धसदृश
SR No.090307
Book TitleNiyamsara Prabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1985
Total Pages609
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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