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________________ नीविषाक्यामृत . .......... .. . ... ... +++H.. जैमिनि' ने भी उस प्रकार का अधर्म-पुरुष अहहत्या का पात्र पसाया है ॥ १॥ संग्राम-भूमि मे भागने वाले शत्र, जो विजिगोपु द्वारा पा लिये गये हैं, उन्हें वस्त्रादि द्वारा सन्मानित करके छोड़ देना चाहिये ।। ७६ ॥ भारद्वाज ने तो गिरफ्तार किये गये, भागने वाले व स्थायो ( युद्ध करने वाले ) दोनों प्रकार के रात्रों को शाम धम से सम्मानित करके छोड़ देनके विषय में कहा है ॥ १ ॥ स्थायी शत्रुभूत राजामों की अन्य गिरफ्तार किये हुए चन्द्रो राजा घों के पास जाकर मैंट होने देना यह सेनापति के अधीन है। अर्थात यदि वह कोई खतरा न मममे सो भेंट करने के अन्यथा नही। किसी विद्वाम् ने भी सक्त बात सेनापति की चि के अधीन बताई है ॥१॥ मनुष्य मात्र को अद्धिरूप नदी का बहाव, पत्तम पुरुषों की वचन-प्रतिष्ठा, सन-प्रसत्पुरुष के व्यवहार व लोक त्यता का साधन, नीति-यम वाशी की महत्ता, मिथ्या वचनों का दुष्परिणाम, विमामघास य विश्वासघाती की कहो पालोचना व झूठी शरथ का दुष्परिणाम-- मतिनदी नाम सर्वेषां प्राणिनामभयतो चहांत पापाय धर्माय च, तबाघ स्रोतोऽतीव सुलभ दुर्लभं तद् द्वितीयामेति ॥ ७८ ॥ सत्यना िशस्तव्यं महत्तामध्यप्रदानवचनमेष शपथ ७६ || सनामसता च वचनायत्ताः खलु सर्वेष्यपहारा: स एव सर्वलोकमहनीयो यस्य वचनमन्यमनस्कतयायायातं भवति शासनानयोदिता वाग्वदति सत्या घपा सरस्वती| व्यभिचाग्विचनप नहिकी पारलौकिकी वा क्रियास्ति ।। २ । न विश्वासघातात परं पातकमस्ति | ८३ ॥ विश्वासघातकः सर्वेषामविश्वास करोति ।। ८४ || असत्यसन्धिषु काशपानं जातान हन्ति ॥ ५॥ - - - -- सथा ममि:-मग्नशन तथा प्रससपास्मीति च वादिनं । यो इन्पारियं सस् प्रमात्मा समरखनं ॥३॥ २ ता च भारवान-मामे वेरिणो ये व यायिनः स्याधिमो पूताः । गृहोता मोचनीयास्ते सात्रधर्मेण पजिताः ।। मोक्तम्- थायमा समर्गस्तु स्थायिनः संप्रणश्यति । यदि सेनापनश्चिते रोचते नाम्पयन ॥ ॥ A इसके पचास-- म पनि में 'असत्यवादिनो मृतस्यापि हिनदुशो बिनश्यति ॥ 1 ॥ सथिता पमिशिधपि निवायित्न शक्यते ॥ || तथाहि पुत्रः किजासत्यमभाषतापीतमयमियन्यथाप्पति पशितिः ॥ ३ ॥ यशोवभः प्रावधानगरीयान् ॥ ॥ इसप्रकार दिशेष पाठ पर्वमान है, जिसका भाव यह है कि मिथ्यावादीका अपयश माने पर भी नष्ट नहीं होता, र जीवित अवस्था में किस प्रकार न होसकता है। एक बार असत्यभाषण भारि दुगुणों से फैलामा अपयश पंजमामों द्वारा भी निवारण नहीं किया जासकमा। जसे 'मह मात के समय पुधिष्ठिर ने अत्यधिकमद्यपान करके मिथ्या भाषण किया' यपि यह बात झूठ है, नमावि उनकी कीर्ति शमसाधारण में सुनी जाती है। गतिहासिक रात को स्पष्टीकरण (संघ प्रिम पाक मी)
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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