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________________ ......... ...... अर्थ-भाश्चर्य है कि संसार में मनुष्य मात्र को बुद्धि रूर नदी पाप व पुण्य दोनों तरफ महा काती है। उनमें से उसका पहला पाप की ओर बहाब अत्यन्त सुलभ-सरलता से होने वाला और दूमरा धर्म की भोर बहाव महाकठिन सारांश यह है कि मनुष्यों की बुद्धि नीति विरुद्ध व स्वाज्य असत्कार्यों-जुत्रा व मपपानादि पाप कार्यों) में स्वतः प्रकृच होती है, परन्तु दिसा सस्व भादि नैतिक शुभ कार्यों में बाबा प्रयत्न करने पर भी प्रवृत्त नहीं होती इसलिये कल्याण की कामना करने बाले नैसिक पुरुष को अपनी खुशि भनीतिसमनापार से इटा कर नीविर सदापार की भार प्रेरित करने में प्रयत्नशील रहना चाहिये ॥७॥ गुह'ने भी मनुष्यों की चुदि हा नदी के पाप और पुण्य इन दोनों लोगों का लेख किया है। बावीमसिंह सूरि ने भी प्राणियों की बुद्धि स्याश्च में स्वतः प्रश्नुत्त होने वाली और शुभ में अनेक प्रयत्नों द्वारा भी प्रवृत्त न होने वालो कहा है। नैवक मनुष्य को दूसरों के हरर में अपना विश्वास उत्पन्न करने के लिये सच्ची शपथ-पोग (कसम) खानी चाहिये, झूठी नहीं, अभयदान देने वाले प्रामाणिक वचन बोलना ही महापुरुषों की सौगध है, अब ना || शक ने भी उसम पुरुषों की शपथ के बारे में इसी प्रकार कहा है ॥१॥ कायों के पायोक गुरु द्रोणाचार्य के इकलौते पुत्र का नाम 'भरवस्थामा एवं कौरवों की सेना में वर्तमान दायी का माम मो अवस्थामा था। महाभारत के युद्ध में गुरु द्रोणाचार्यकी यह प्रतिज्ञा थी कि पति मेरा इबोण पुत्र 'अवस्थामा मारा जापगा तो मैं पुर मही करूगा | नमों की तरफसे पुर करने वाले बीर गुरु योजना को जीतना पांडवों के लिये टेडी सीर पी. स्पलिये उन्होंने गुरुत्रोणाचार्य को युद्ध से मारनेको राजनैविक पास सी। एक समय जब पाण्डवों द्वारा कौरव सैम्पका भरवस्यामा मामाहापी पराशायी किया गया और विश्वुमि बनाई गई एवं 'अश्वत्थामा मृतः अश्वत्थामा मुसा इस प्रकार अरशमा नाम के गुरु द्रोबाचा पुत्र के मरनेका शोर किया गया, उसे द्रोपावाने सुना । परन्तु बन्हें सत्र की कही बात पर सहला विश्वास नहीं हुमा, इसलिये उन्होंने इसका निश्चय करने के लिये सस्पबादी धर्मराज युधिदिर से का। कन्या, मम भीमद्वारा धर्मरान युधिष्ठिर पेसे अवसर पर मिस्वाभापलिये पाच किये गये प्रतः इनकेवात विल चिणिरने 'भरवस्यामा नाम का हावी हो मारा गया , दोणाचार्यका पुत्र' यह जानते हुए भी 'परवाषामा सुतः परोपका मी 'मस्थामा मर चुका है, परन्तु वह मनुष्य है अथवा हायी इसे में नहीं जानता इस प्रकार मियाभाषनर बाला चौकी तरफ से खेले जाने वाले राजनैतिक पाप-पैचों से गुरु दोष 'प्रश्वत्थामा यः नरो-इवना की सुम सके इसलिये उम्हे धर्मराज युधिषि की बात पर विश्वास हो गया और पुत्रशोक-से या होकर स्वर्गवास को माल हुए । बारीश पद है कि एकबार मिध्वाभाषणाने से पुधिधिर की अभी भी कटु बालोचना की जाती है कि महों से मनपान करके मिथ्याभाषस किया || 1- सरेको कीर्तिका जोर करना उसके प्रावों के पास से भी भिक हानिकर है ॥ ॥ तथा च गुरु:-प्रतिनाम नही माता पायमोजमा मुखा मिश: प्रथम तस्याः पापोयमस्तवापर ॥१॥ २ सभाबादीमसिंहसहित- हेये वर्ष की विरमेनाप्यसती शुभे ।। तभा सका- नमाना gणाम याममयमई । स एव सम्मः शरवः किमन्यैः शपर्यः कृतः ॥११॥
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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