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________________ २६२ नीतियाक्यामृत ......... . .. ..... के कारण उसके अपराधी साबित हो जानेपर न्यायाधीश द्वारा उसे प्राण दान देकर उसका सर्वस्व (तमाम धन) हरण कर लेना चाहिये ॥ १७ ॥ शुक' विद्वान ने भी ऐसे अपराधी के विपय में इसी प्रकार दहित करने का संकेत किया है।। १ ।। शपथके अयोग्य अपराधी व उनकी शुद्धि का उपाय, लेख प पत्र के संदिग्ध होने पर फैसला, न्यायाधीश के विना निएं यकी निरर्थकता, प्राम व नगर संबन्धी मुकदमा, राजकीय निणेय एवं उसको न मानने वालेको कड़ी सजा - लिंगिनास्तिकस्वाचारच्युतपतितानां दैवी क्रिया नास्ति १८ तेषां युक्तितोऽर्थसिद्धिरसिद्धिर्वा १६ संदिग्धे पत्रे साक्षे या विचार्य परिच्छिन्यात् ॥ २० ॥ परस्परविवादे न युगैरपि विवाद. परिसमाप्तिरानन्स्याद्विपरीतप्रत्युक्तीनां ॥ २१ ॥ प्रामे पुरे वा घृतो व्यवहारस्तस्य विवादे तथा राजानमुपेयात् ।। २२ ।। सज्ञा दृष्टे व्यवहारे नास्त्यनुवन्धः ॥२३ ।। राजाज्ञां मर्यादा वाऽतिक्रामन् । कलेन इल्डेनोहताज्य।। २४ ॥ अर्थ-सन्यासी के भेषमें रहनेवाले, नास्विक, परिम-भ्रष्ट व जाविसे मयत मनुष्योंके अपराध यदि गवाही आदि उपाय द्वारा सावित न होसकें, क्यापि धर्माध्यक्ष (पायाधीरा) को शपथ खिलाकरी उनके अपराध सावित नहीं करना चाहिये, क्योंकि ये लोग अक्सर झूठी शपथ खाकर अपने को निर्दोषो प्रमाणित करनेका प्रयत्न करते हैं, इसलिये न्यायाधोश को युक्तियों द्वारा उनको प्रोतन-सिद्धि करनी चाहिये अर्थात् अनेक यक्ति-पणे उपायों द्वारा उन्हें अपराधी साबित कर इंडित करना चाहिये अथवा निर्दोषो सावित होने पर उन्हें छोड़ देना चाहिये ॥ १८-१६ ॥ पादरायण' ने भी सन्यासियों की शुद्धिके विषय में बही कहा है ॥१॥ यदि वादी (मुदई) के स्टाम्प वगैरह लेख वा साक्षी संदिग्ध-संदेह युक्त हो, सोन्यायाधीश अच्छी सरह सोच-समझार निर्णय (फैसला) देवे ।। २० ॥ शुक्र ने भी सदिग्ध पत्र के विषय में इसी प्रकार का इन्साफ करना बताया है ॥ १ ॥ मुरी मुद्दायतो के मुकदमे का फैसला विना धर्माध्यक्ष के स्वयं उनके द्वारा वारवर्ष में भी नहीं किया जासकता,क्योंकि परस्पर अपने २ पक्षको समर्थन आदि करने वाली युक्तियां अनन्त होती है इसलिये दोनों को न्यायालय में जाकर न्यायाधीरा द्वारा अपना फैसला कराना चाहिये, वहां पर सत्यासत्य का निर्णय किया जासकता है।॥२१॥ 1 मा च शुक्र:-यदि धादी मोsपि दिमाः कट जैः कृतः । पश्चातस्य च विशान. सर्वस्वहरण स्मृतं ॥ १॥ . २ तथा च चादरायपः-युनाया वितिय सर्वेशी सिंगिनां तपसः किया। दया पवनवा एसिरसंगल्या विवर्जनम् । तथा च शुकः--स दिग्धे लिखिते जाते साये वाथ सभासदैः । विचाय निर्णयः कार्यो धो भास्नसुनिश्चयः ॥ १ ॥ A उमस पाट मु०म० प्रति से संकलन किया गया है।
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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