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________________ ध्यवहार समुद्देश .... . ... किसी' विद्वान ने कहा है कि राजा को न्यायाधीश के फैसले को न माननेवालेका समस्वधन जन्त कर लेना चाहिये ॥ १॥ ग्राम व शहर संबधी मुकदमों का फैसला कराने के लिये वहां के महई-मुदायकों को राजा के पास जाना चाहिये ।। २२॥ गौतम विद्वान के उद्धरण का भी यही अभिप्राय है ॥ १ ॥ राजा द्वारा किया हुआ फैसला निर्शेष होता है, इसलिये जो मई-महायल राजकीय प्राहा या मर्यादा का वचन करे (स निर्णय को न माने) उसे मृत्यु बरिया जावे ।। २३-२४॥ यक' ने भी राजकीय निर्णय को न मानने वाले के लिये मृत्यु- देने का संकेत किया है॥१॥ तुष्ट निग्रह, सरलता से हानि, धर्माध्यक्ष का राजमभामें कर्तव्य, कलह के वीज व प्राणों के साथ आर्थिक-कृतिका कारण न हि सताना नालाम्योऽपित लिनयोपायोऽग्निसंयोग एवं वक्र काठ सरलपति ॥२५॥ ऋजु सऽपि परिभवन्ति न हि सथा पक्रतरुश्विद्यते यथा सरलः ॥ २६ ।। स्वोपलम्मपरिहारेण परभुपालभेत स्वामिनमुत्कर्ष यन् गोष्ठीमवतारयेत् ।। २७ ॥ न हि भतु भियागात् परं सत्यमसत्यं वा वदन्तमवगृहीया३ ।। २८ ॥ अर्थसम्पन्धः सहवासश्च नाकलाः सम्भवति ॥ २६ ॥ निधिराकस्मिको बार्थलाभः प्राणैः सह संचितमप्यर्थमपहारयति ॥ ३० ॥ प्रथे-अन्यायी दुष्टों को वश करने के लिये दण्डनीति को बोरकर और दुसरा कोई उपाय नहीं, क्योंकि जिस प्रकार टेडो व तिरछी लकड़ी भाग लगाने से ही सीधी होती है. इसी प्रकार पापी लोग भी हगल से ही सीधे (म्याप मार्ग में चलने वाले ) होते हैं ॥ २५ ॥ शुक्र विद्वान ने भी दुष्टों को सोधा करनेका यही उपाय बताया है॥१॥ जिस प्रकार अंगल में वर्तमान टेदा वृत्त न काटा जाकर सीधा हो काटा जाता है, उसी प्रकार सरल स्वभाव पाला मनुष्य ही सर्व मनुष्यों द्वारा परास्त किया जाता ॥२६॥ गुरु' विद्वान के उद्धरण का भी यही मषिप्राय है ॥१॥ धर्माबक्ष (न्यायाधीश) को राज-सभा में राजा को प्रसन्न करते हुये मुर्ग-मुहखानों का विवर (मकहमा ) इस परोके से विस्तार पूर्वक करना चाहिये, जिससे उसके ऊपर उलाहना न पाये और एक दोनों में से कोई एक कानूनन पोषी ठहराया जाये ।। २७॥ 14 चोक्त'-प्रमाधिकारिभिः प्रोक्तं यो बार पापथा किवात सर्वस्वहरणं तस्य व्या कार्य महीशा । २ तथा गौतमः-पो वा पवित्रामामे यो विषादस्म निभः कृतः स्वाभावि भव : स्पा पार्म निदेदयेत् ॥१॥ वाए:-चावपक्षिमियी योऽन्यषा करते हठाद विषयाचपणास्थान विकार्य समाचार ॥१॥ बाश-यात्र शिक्षा पहियोगारमशः । दुबमोऽपि वा दबारर्भवति सार।। १ वा गुदा-माससमते पपकोऽप परामर्ष । पथा सरस: सुख निचले सके..॥
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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