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________________ व्यवहार समुदेश Porn. सत्यापयितच्यो दिव्यक्रियया वा ॥ १४ ॥ यादृशे ताशे षा साधिणि नास्ति दैवी क्रिया किं पुनरुभयसम्मते मनुष्ये नीचेऽपि ।। १५ ।। यः परद्रव्यममियुजीवाभिलम्भते वा तस्य शपथः क्राश। दिव्यं वा ।। १६ । अभिचारयोगविशुद्धस्याभियुक्ताधेसम्भावनायां प्राणावशेषोऽर्थापहारः ॥१७॥ अर्थ-जहां पर मिध्याव्यबहार-झूला विवाद-खड़ा होजाता है वो यथार्य निर्णय करने के लिये शिष्ट पुरुष को विवाद नहीं करना चाहिये, क्योंकि जिस मुकदमे में वादो व प्रतिवादो ( मुदई और मुद्दायन ) दोन झूठे होते हैं अथवा मुदई के स्वाम-वगैरह झूठे होते हैं वहां विवाद ( मुकदमा) खड़ा हो नहीं हो सकता, तब निराधार निर्णय की खाशा करना व्यर्थ है ।। १३ ॥ प्राषिपुत्रक' ने भो भूठे व्यवहार वाले विधादको निरर्थक कहा है ॥१॥ किसो पुरुषने किसी मनुष्य को अपना सुवर्ण-पादि धन संरक्षण करने के लिये धरोहर रूपसे सोपाही और उस धन के नष्ट हो जाने पर (यापिस मांगने पर यदि वह मनाई कर बेठे) उस समय म्यायाधीशका कर्तव्य है कि मुसका प्रमाक धरोहर रखने वाले पररणमाणिकता--(सचाई) द्वारा करे, और यदि ऐसा न हो धरोहर रखने वाला (विश्वासपात्र व सच्चा न हो) सो उससे शपथ करावे या उसे देशका भय दिखा कर इस प्रकार सत्य का निर्णय करे कि मुई का धन मुद्दालय के यहां से जो नष्ट हुभा है. यह पोरों द्वारा अपहरण किया गया है ? अथवा मुहायम स्वयं मुद्दई के धन को इरफ कर गया है। नारव ने भी धरोहर के धन सम्बन्धी विवाद का इन्साफ करने के लिये उक्त दोनों गाय बताये हैं ॥१॥ जब मकामे में जिस किसी प्रकारका पक्ति साची( गवाही) होता है तब न्यायाधीश द्वारा महई महायले को शपथ कराकर सत्यका निणेब करना व्यर्थ है। फिर दोनों मुदईमुद्दाबले द्वारा मानेहुये मेष्ठपुरुषके स्त्री होने पर सत्य की जांच के लिये शग्य का प्रयोग करना यो बिलकुल निरर्थक हैही ॥१५॥ भार्गव ने भी गवाही द्वारा विवाद सम्बन्धी सस्यता का निर्णय हो जाने पर शपब - क्रिया को निरर्थक बताया है ॥ १॥ दूसरे का धन अपहरण या नष्ट करने वाले अपराधो का निर्णय करने के लिये साक्षी के प्रभाव में न्यायाधीश को दिय क्रिया (शपथ कराना मादि) उपाय काम में जाना चाहिये ।। १६ ।। गर्ग ने भी ऐसे अपराधी की जाँच के लिये शपथ कराने का संकेत किया है ॥१॥ सो अपराधी शपथ-प्रादि कूटिनीति से अपने लिये निॉप साबित कर चुका हो, परमात चोरी १ तथा च मविपुत्रका-सत्यकारसंधुस्तो व्यवहारो नराधिए 1 विवादो वादिना तत्र मेव युक्ता कचन | AR २ तथा च नारा-मिलेपो पदि नष्टः स्यात् प्रमाणः पुरुषार्षिक: । तपमा सकायों परिग्वे वा नियोजयेत् ॥ ३ तथा च भार्गव:-धर्मापि भवेत् साती विवाद पर्व वरियते । यथा यो किया न स्यात् tक पुनः पुरुषोत्तम ।।। " तया च गर्गः-अभयुजीत चन्मयः परार्थे वा विलुम्पते । शपथस्तस्य कोशो वा योग्यो वा दिल्यमुच्यते ॥१॥
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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