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________________ * नीविवाक्यामृत के १३ र शिक्षाप्रसोंका' निरूपण करते हैं :-- सामायिक, प्रोषधोपवास, भोगोपभोगनियम और पायदान यह चार प्रकारका शिक्षात्रत है ॥१॥ मामाकी उमति चाहने वाले श्रावकों को ईश्वर भक्तिका उपदेश "समय" कहलाता है एवं उसमें मारिज कियाकाण्ड (प्रस्तावना और पुराकर्म आदि) को शास्त्रकारोंने “सामायिक" कहा है। लोकमें साक्षात् ईश्वर-तीर्थकरके न होने पर भी उसकी मूर्तिको पूजा पुण्यबंधके लिये होती है। माकी मूर्ति सर्पके विपकी मारण शक्तिको नष्ट नहीं करती ? अवश्य करती है ।।३।। जो व्यक्ति देवपूजा और साधुओंकी सेवा न करके गृहस्थ होता या भोजन करता है वह उत्कृष्ट भामधिकारका भक्षण करता है ।।४।। अब मोषधोपकासका' निरूपण करते हैं: स्पेक मासमें वर्तमान दो अष्टमी और दो चतुर्दशी पर्वोको "प्रोषध" कहते हैं । अती श्रावरको उनमें देवपूजा और उपवास आदि तोका पालन करके अपनी धार्मिक उन्नति करनी चाहिये ॥१॥ __उपवास के दिन उसे म्नान, गंध, अंगसंस्कार, वस्त्राभूषण और स्त्रीमें आसक्ति न करके समस्त भापलियामोंका त्यागकर चारित्र पालन करनेमें तत्पर रहना चाहिये । क्योकि जो पुरुप बहुत प्रारम्भमें प्रवृत्ति करता है उसका कायक्लेश हाथीके नानकी सरह दिया है ॥३॥ ... कायम्लेश (उपवासादि) के बिना आत्माकी विशुद्धि नहीं होती ! क्या लोकमें सुवर्णपाषाणकी विवाडि लिये अग्निको छोड़कर अन्य कोई साधन है ? अर्थात् नहीं है ॥४॥ जो पुष्पशाखी पुरुष अपने चित्तको चरित्रपालन द्वारा पवित्र बनाता है उसने अपने कर कमलों में चिन्तामणिरत्न प्राप्त कर लिया और दुःस्वरूपी वृक्षको जलानेके लिये दावानल अग्नि प्राप्त करती ॥५॥ अब भोगोपभोगपरिमाण-तका निर्देश करते हैं : जो अन्न आदि पदार्थ एकबार भोगा जाता है उसे भोग और जो वस्त्र और स्त्री आदि पदार्थ पार र सेवन किये जाते हैं, उन्हें 'उपभोग कहते हैं ॥१॥ धार्मिक मनुष्यको अपने चित्तकी तृष्णाकी निवृत्तिके लिये उनका परिमाण करना चाहिये और प्राप्त और योग्य भोगोपभोगसामग्रीके सेवनका नियम समयकी मर्यादासे कर लेना चाहिये ।। ___ यावजीवन और परिमितकालपर्यन्त त्यागको क्रमसे यम और नियम कहते हैं ।।३।। इसनतको पालनकरनेवाले पुरुषको इसलोकमें लक्ष्मी और परलोकमें स्वर्गश्री प्रान होती है और परचाह मुक्तिश्री भी दूर नहीं रहती ॥४॥ पात्रदानका निरूपण, इसी धर्मसमुद्देशके १० चे सूत्रमें किया जायेगा। ॥ इति शिवामत निरूपणम् ।। भब उम. सूत्रका युक्तिपूर्वक उपसंहार करते हैं : १-२ यशस्निलक प्रा. से| * यशस्तिलक से।
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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