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________________ ५४ नीतिवाक्यामृत ..BIPI.......... . metertaman..MahestnuaMium... भोजनका समय, शक्तिहोन के योग्य बाहार, त्याज्य स्त्री, यथाप्रतिवाले बम्पति, प्रसग्नमित, वशीकरण, मल-मत्रादि वेगोंको रोकने से हानि, विषय भोगके अयोग्य काल व क्षेत्र, परस्त्री त्याग, नैतिक पेषभूषा व पाचरण, आयात और निर्यात व दृष्टान्त द्वारा समर्थन, अविश्वाससे हानि कोकवदिवाकामो निशि स्निग्धं सुजीत ॥९७१ चकोरपन्नत कामो दिवा च । ६८॥ पारावतकामो वृप्यान्नयोगान् चरेत् ॥६६॥ चष्कयचीनां सुरमीा पयःसिद्ध माषदलपरमान्न परो योगः स्मरसंवर्द्धने ॥१००|| नायषस्यन्ती स्त्रीममियायात् ॥१.१॥ उत्तरः प्रवर्षवान् देशा परमरहस्यमनुरागे प्रथम-प्रकृतीनाम् ॥१०२॥ द्वितीयप्रकृतिः सशावलमदूपवनप्रदेशः ।।१०३। तृतीयप्रकृतिः सुरतोत्सवाय स्यात् ॥१०४॥ धर्मार्थस्थाने लिङ्गोत्सवं लभते ।।१०५॥ स्त्रीपु. सयोर्न समसमायोगात्पर वशीकरणमस्ति ॥१०६॥ प्रकृतिरूपदेशः स्वाभाविकं च प्रयोगपैदग्ध्यमिति समसमायोगकारणानि ॥१०७|| जुत्तर्णपुरीषाभिष्यन्दार्तस्याभिगमो नापत्यमनवैध करोति ॥१०४ाम अधाशुभ दिशा मान देवायतने मैथुन कुर्वीत ।।१०६॥ पर्वणि पर्वणि संधौ टपहते वादि कुलस्त्रियं न गच्छेव ॥११०॥ न तद् गृहाभिगमने कामपि स्त्रियमधिशयीत ॥१११॥ वंशवयोवृत्तविद्याविभवानुरूपो वेष: समाचारो वा केन विडम्बयति ॥११२॥ अपरीक्षितमशोधितं च राजकुले न किंचित्प्रवेशयेन्निकासयेद्वा ॥११३।। भूयते हि स्त्रीदेवधारी कुम्तलनरेन्द्रप्रयुक्तो गूढपुरुषः कर्णनिहितेनासिपत्रेश पन्हवनरेन्द्र हयपतिश्च मेषविषाणनिहितेन विषेण कुशस्थलेश्वर जघानेति ॥१४॥ सर्वत्राविरवासे नास्ति काचिक्रिया ॥११॥ भर्य-पकवावकवीके समान दिनमें मैथुन करनेवाला रात्रिमें सचिकच्या वस्तुका मरण करे और चकोर पक्षीकी तरह गत्रिमें मैथुन करने वाला दिन में भोजन करे। सारांश यह है कि मनुष्य मी पलीकी तरह रात्रिमें मैथुन-कामसेवन करते हैं, अतः उन्हें दिनमें ही भोजन करना चाहिये, इससे बर्हिसाधर्म व स्वास्थ्य पुरक्षित रहमा है ।।१७-१८ ओ कबूतरकी तरह होनशक्ति होनेपर भी काम सेवन में प्रवृत्त होते हैं, उन्हें वीर्य-पक मन्न --त-शर्करा-मिश्रित मालपुभा-मादि:-मण करना चाहिये ।।एक बार ब्याई हुई गायके दूधसे सिर की हुई जपकी खीर खानेसे विशेष कामोहोपन होता है ।।१०।। विषय-भोगसे परामुख-विरक-स्त्रीसे काम-सेवन नहीं करना चाहिये ॥१०शा जल-वृष्टिवाने उत्तर देश में रहनेवाला व वष प्रकृतिवाला पुरुष पशिनी स्त्रियों द्वारा विशेष प्यार किया जाता है। सारास यह है कि कामशास्त्र में वृष, शश व अश्व इस प्रकार वीन प्रकृविवाले पुरुष एवं पणिनी शंखिनी और हस्तिनी इस प्रकार बीन प्रतिवासी लक्षनामोंका उल्लेख है, इनमें प्रथमप्रकविदाने (एष) पुरुषसे प्रथम प्रतिमासी (पणिनी) विशेष अनुरा करती है एवं द्वितीय प्रकर्तिमानी शंखिनी स्त्रियां पसी प्रकाठिवावे
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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