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________________ sartanatte दिवसानुष्ठान समुईश शराप्रकृति- पुरुषको हरी दूब युक्त व कोमल बगीचे के रमणीक प्रदेशकी तरह सुखपूर्षक सेवन करती है। तीसरी अश्वप्रकृति पुरुष अत्यंत वीर्ययुक्त होनेसे मैथन के समय स्त्रियोंको विशेष संतोष देनेवाला होता है।॥१०-१०४ धर्मस्थान--जिनन्दिर आदि और अर्थस्थानों (व्यापार-आदि की जगहों) में मनुष्यकी इन्द्रियाँ प्रसन्न रहती हैं ॥१॥स्त्री व पुरुषों के समसमायोग (एकान्स स्थान में मिलना जुलना बाजार मादि) को छोड़कर दूसरा कोई वशीकरण नहीं है ॥२०६॥ निम्न चार पार्योसे स्त्री पुरुषों का एकान्स स्थानमें मिलना रूप मशीकरण सफल होता है। १-प्रकृति (स्वभाव) अर्थात् एकान्त में सथित बातालाप-प्रादि द्वारा परस्पर स्वभावका शान करना, २सपदेश-अनुफूज करने वाली समुचित शिक्षा, ३-प्रयोग बैदरभ्य-एकाम्समें की जाने वाली प्रयोग की चतुराई-ईसी-मजाक-मादि ॥१०७॥ भूख, प्यास व मल-मूत्रादिके श्रेगको रोकनेसे पीड़ित हुआ मनुष्य जब स्त्री-सेवन करता है, तो एससे निर्दोष (निरोग) संसान सत्पन्न नहीं होती ॥१०॥ विवेकी मनुष्यको प्रातः काल, मध्यान्दकाल व सांयकाल संबंधी तीनों संभ्याभोंमें, दिनमें, पानीमें और मन्दिरमें मैथुन नहीं करना चाहिये ॥१॥ मनुष्यको पर्व (पक्षण-मादि) दिनोंमें, सीनों संध्यामों में, सूर्य-ग्रहण-आदि भयकर उपद्रवोंसे भ्याप्त दिनों में अपनी इसव (धर्मपत्नी) का सेवन नहीं करना चाहिये ॥१५॥ किसी स्त्रीके गृह बाकर उसके साथ शबन न करे ॥१११॥ कुटुम्ब, उम्र, सदाचार-कुल-धर्म-मान-विद्या और धनावि ऐश्वर्वके भनुन कोजाने पानी वेषभूषा और साधरण किसीकोभी दुःखी नहीं बनावा - सभी को सुखी बनावा है। क्योकि एक कुटुम्ब आदि के अनुकूल वेष व नैविक प्रवृत्ति करने वालेकी समाज व राष्ट्र में पढ़ाई की और पह सबका प्रेमपात्र बन जाता है ।।११२॥ राजाको अपने महलों में ऐसी वस्तु प्रविष्ट नहीं होने देनी चाहिये और न वहांसे बाहर निकलने देनी चाहिये, जोकि उसके प्रामाणिक हितेषी पुनरों द्वारा परीक्षित और निवर्वोष साबित की हुई न हो ॥११॥ इतिहासप्रमाण साक्षी है कि कुन्तला देशके राजाद्वारा भेजे हुए स्त्री-भेषधारी गुप्तपरने अपने कानों के पास छिपाये हुए खग द्वारा पल्लव या पल्हव नरेशको मार डाला। इसी प्रकार हम देश राज्य हारा भेजे हुए गद्ध पुरुषने मेदेके सींगमें रमले हुए विष द्वारा रास्थलदेशविरोष-के नरेश को मार सला । अतः अपरीक्षित व असंशोधित वस्तु राज-गृह में प्रविष्ट न होनी चाहिये और न यहाँसे बाहिर निकामनी चाहिये ॥१४॥ लोकमै सभी पर विश्वास न करनेवाले व्यक्तिका कोई भी कार्य सिद्ध नहीं हो पाता ||११|| उवि विषयानुष्ठान समुरेश।
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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