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________________ ३२६ नीतिवाक्यामृत mutnano rmaan... Berdstem परक' विद्वान ने भी कमाई कि समान भरने शासीरिक मधुर, तम्म करने में उत्साह. शारीरिक रहता, दुःखोंको सहन करने की शक्ति, पात पित मादि दोषोंका चय व जठराग्नि प्रवीण होती है ॥१॥ निद्राका लक्षण उससे साम, दृष्टान्तद्वारा समर्थन, मायु-राक कार्य, स्नानका रेश्वर बाभ, स्नानकी निरर्थकता, स्नान-विधि व निषिद्ध स्नान इन्द्रियात्ममनोमरुतां सूक्ष्माषस्था स्थापः ॥२०॥ यथासात्म्यं स्वपातामपाको भवति प्रसीदन्ति चेन्द्रियाणि ॥२१॥ सुघटितमपि हितं च भाजन साधयत्यमानि ||२२|| निस्थ. स्नानं द्वितीयमुत्सादनं तृतीयकमायुष्यं चतुर्थक प्रत्यायुष्यमित्यहीन सेवेत ॥२६॥ धर्मार्षकामशुद्धिदुर्जनस्पर्शाः स्नानस्य कारमानि ॥२४॥ श्रमस्वेदालस्यविगमः स्नानस्य फलाम् ।।२।। जलचरस्पेव तत्स्नानं यत्र न सन्ति देवगुरुवर्मोपासनानि ॥२६॥ प्रादुर्मवरण त्पिपासोऽभ्यास्नान कुर्यात् ॥२७॥ भातपसंतप्तस्य अलावगाहो एमान्य शिरोप व फरोति ॥२८॥ . सर्व स्पर्शन, रसना आदि इन्द्रियां, प्रामा, मन और श्वासोच्छवासको सूरमावस्था 'निद्रा' है ॥२०॥ प्रकृति के अनुकूल यथेष्ट निद्रा नेनेसे खाये हुए भोजन का परिपाक होजाता है और समस्त इन्द्रियां प्रसन्न रहती है ॥२१॥ जिस प्रकार साबित व खुला हुमा वर्तन अन्न पकाने में समय होवा, इसीप्रकार यथेष्ठ निद्वासे स्वस्थ शरीर भी कर्तव्य पालनमें समर्थ होता है । निस्यस्लान, स्निग्ध पदार्थोसे उबटन करना, आयुरभक प्रकृति-पतके प्रडका प्राहार-विहार प्रत्यायुष्य (शरीर और इन्द्रियों को सुरक्षित और शक्तिशाली बनाने वाले कार्य-पूगोल मल-मूत्रारिक गों को न रोकना, मायाम व मालिश मावि ) कार्य करने में न्यूनता (कमो)मरनी चाहिये। भर्वान् उक्त कार्यों को यथाविधि बधापति सम्पन्न करना चाहिये ॥२३॥ मनुष्यको धर्म, अर्थ और काम-शुद्धि रखने के लिये एवं 'दुष्टोंका स्पर्श होजाने पर प्लान कर पाहिये ॥२४ा स्नान करनेसे शीरकी पकावर भाव और पसीना मोजावे है ||Rit , पाच परका-बाप कर्मसामय स्पै दुखसहिन्यण । दोषयोऽग्विादिस्य पालामाबापते १ A सत पण मु०म० प्रविसे संकलन किया गया है, ० ० पुस्तक टिकमपि विज - मा . बत्यम्मानि' ऐसा पाst, परन्तु विशेष अर्थ मेद नहीं। इसके पश्चात हस्तपापम मुलायमानुन निगु रातकर्म हत्या (१) पुषसी पुरोमावहरवं पयामेऽस्मिा ' या मालिक भाब होनेसे डोक वर्ष प्रचीत महों होता । किन्तु प्रमावानुसार वर्ष पहले किसानों और पैरोंच मन भाब, उत्साहमर पायुषीया रजसका स्त्रीका सेवन बहीमा चाहिने पूर्व प्रणा स्त्रीको दस दिन स्लाम करना चाहिये परन्तु मे माइके परचा ही उसका उपभोग करना चाहिये।
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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