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________________ दिवसानुष्ठान समुद्देश चरक' विद्वान् ने भी कहा है कि स्नान शरीरको पवित्र करनेवाला, कामोद्दीपक, श्रायुषसँ परिश्रम, पसीना व शरीर के मलको दूर करनेवाला, शारीरिक शक्ति वर्द्धक और शरीरको तेजस्वी बनाने बाला है ||५|| SAMBIGGende ३२७ जो व्यक्ति देव, गुरु और धर्मकी उपासना के उद्देश्य से स्नान नहीं करता उसका स्नान पक्षियों की तरह निरर्थक है ||२६|| भूखे और प्यासे मनुष्यकी मालिश करने के बाद स्नान करना चाहिये ||२७|| जो व्यक्ति सूर्य आदि की गर्मी से संतप्त होकर जनमें प्रविष्ट होता है ( स्नान करता है ), उसके नेत्रोंको रोशनी मंद पड़ जाती है और शिरमें पीड़ा होजाती है, अतः गर्मी से पीड़ित व्यक्ति तरकाल स्नान न करे ||२८|| चाहार सम्बन्धी स्वास्थ्योपयोगी सिद्धा बुभुक्षाकालो मोजनकालः ॥ २६ ॥ श्रक्षु धितेनामृतप्युपभुक्त' च भवति विषं ॥३०॥ जठराग्नि चाग्नि कुर्वभादारादौ सदैव वज्रकं वलयेव ||३१|| निरन्नस्य सर्व द्रवद्रव्यमग्नि नाशयति ||३२|| अतिश्रमपिषा सोपशान्तौ पेयायाः पर कारणमस्ति ||३३|| घृताधरोत्तर भुजानोऽग्नि दृष्टि न लभते ||३४|| सक्रुद्ध रि नीरोपयोगो वन्हिमवसादयति ॥ ३४|| कालातिक्रमादभद्वेषो देहसादश्च भवति | ३६ || विध्याते बन्दौ किं नामेन्धनं कुर्यात् ||३७|| यो मितं ते स पहुंचते || १८ || प्रमितमसुखं विरुद्धमपरीक्षितम साधपाकमतीवर समकालं श्वान्नं नानुभवेत् ||३६|| फम्गुडजमननुकूलं चुधितमतिक्रूर च न मुक्तिसमये सन्निघा पयेत् ॥ ४० ॥ गृहीतसेषु सहभोजिष्वात्मनः परिवेषयेत् ॥४१॥ तथा भुञ्जीत यथासायमन्येधश्च न विपद्यते वन्हिः ||१२|| न भुक्तिपरिमाणं सिद्धान्तोऽस्ति ||४३|| वन्द्य मिशानायस हि भोजन || ४४ || अतिमात्र भोजी देहमग्निं च विधुरयति ||४५ || दीप्तो वन्हिर्लघुभोजाना चपयति ॥ ४६ ॥ श्रत्यशिदु:खेनान्नपरिणामः || ४७|| श्रमार्तस्य पानं मोजन च ज्वराय येवा ||४८ || न जित्सूर्न प्रस्त्रोतुमिच्कुर्ना समञ्जसमनाश्च नानपनीय पिपासोद्र कमश्नीयात् ॥४६॥ भुक्त्वा व्यायामव्यवायौ सद्यो व्यापत्तिकारणं ॥५०॥ आजन्म सात्म्यं विषमपि पथ्यं ||३१|| असात्म्यमपि पथ्यं सेवेत न पुनः सात्म्यमप्यपर्थ्य ||१२|| सर्व बलवतः पथ्यमिति न कालकूटं सेवेत ॥ ५३ ॥ सुशिचितोऽपि विक्तंत्रज्ञो नियत एव कदाचित्रिषत् ||१४|| संविभज्यातिथिष्याश्रितेषु च स्वयमाहरेत् ॥ ५५ ॥ 6 अर्थ- भूख लगने का समय ही भोजन का समय है । सारांश यह है कि विवेकी पुरुष साधर्म की रक्षार्थ रात्रि भोजन का त्यागकर दिनमें भूख लगने पर प्रकृति-ऋतु के अनुकूल भोजन करे, बिना भूख कदापि भोजन न करे HRE 1 तथा च चरकः—पवित्र हृष्यमायुष्य अमस्वेदमापहम् । शरीरका सन्धानं स्नानमो अस्कन पर
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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