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________________ दिवसानुशन समुरेश ३२४ tandinirnaPOHain अभाई, भूख प्यास, वाष्प, नीद और परिश्रमसे होनेवाले श्वासोच्छवास के वेगों को नहीं रोकना चाहिये । क्योंकि मूत्रका धेग रोकने से गुदा और जननेन्द्रियमें पीस, पेशाब करने में कष्ट व शरीरमें पीड़ा होती है एवं शरीर झुक जाता है तथा अंडकोषोंकी वृद्धि होजाती है। मलका वेग रोकने से पायाशय और शिरमें पीड़ा-प्रापि होते हैं। बीके बाकी रीफन अनधि सामगोषों में पीड़ा और पेशाषका ककजाना आदि उपद्रव होजाते हैं-त्यादि । मतः साध्य पाहनेवालेको उक्त बेग नहीं रोकना पाहिये ॥१॥ शौचके पश्चात् गुशा और हरत-पाद आदिकी शुद्धि मुल्तानी मिट्टी और जलसे करनी चाहिये व अन्त में उन अंगों में सुगन्धित द्रष्य का लेप करना चाहिये, वाकिफ दुर्गन्धि नष्ट होकर पिच प्रसन रहे ॥१२॥ बाहरसे भाया हुषा व्यक्ति पाचमन (करखा) किरे बिना अपने गृहमें प्रवेश न करे ॥१॥ जिनकी शारीरिक शक्ति त्रीण होगई हो-जिनके शरीरमें खून की कमी हो, ऐसे दुर्वल मनुष्य अजीखे रोग-युक्त, शरीरसे वृद्ध, लक्षा-श्रादि वात-रोगी और सह-भोगी मनुष्यों को छोड़कर दूसरे स्वस्थ बालक और नायुवकों के लिये प्रातःकाल व्यायाम करना रसावन के समान लाभदायक है ॥१४॥ परक' विम ने भी उक्तबाव का समर्थन किया है। - शरीरमें परिभम उत्पन्न करनेवाली किया (, बैठक बहिन भावि) 'भ्यायाम' कहते हैं ॥१५॥ परक विद्वान् ने भी कहा है कि शरीरको स्थिर रखनेवासी शस्तिवर्षिनी 4 मनको प्रिय . सगनेवाली सा संचालन प्रादि शारीरिक क्रिया को न्यायाम करते हैं, इसे उचित मात्रामें करना पाहिये ॥१॥ साभारि शस्त्र संचालन तथा हावी और मोदे भादिकी सबारीसे म्यायामको सफल बनाना पाहिये ॥१॥ मायुर्वेद के विद्वान माचा शरीरमें पसीना माने व व्यायाम का समय मानते हैं ॥१५॥ परक विद्वान्ने भी मति मात्रामें न्यायाम करनेसे अत्यन्त पकावट, मनमें महानि बारभादि भनेक रोगों के होने का निर्देश किया है ॥१॥ जो मनुष्य शारीरिक शक्तिको गलपन कर अधिक मात्रामें व्यायाम करता है, उसे कौन-कौन मी शारीरिक व्याधियां नहीं होती ? सभी होती है ॥१८॥ जो कोण व्यायाम नहीं करते उनको अठराग्निका दीपन, शरीर में उत्साह और पता किसमकार मा सकती है। नही हो सकती . वारक-परवाताव पोलीभाषकाः। वर्षपेयुाषामं बुधितास्कृषिवार कार:-रीमा काष्टा स्पेयर्याय पारिनी देहव्यायामसम्यादा मात्रा का समाचरेत् ॥ पा :-अमः समः पपस्युम्यारपितं प्रणामकाप्रतिव्यायामतः सो स्वरमणि मापते ॥
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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