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________________ २०८ 700104 नीतिवाक्यामृत योग्य नहीं हैं, उन्हें राजाको भिन्न २ कार्यों (तालाब खुदवाना - श्रादि) में नियुक्त करके क्लेशित - दुःखी करना चाहिये ||१|| कथा-गोष्ठी योग्य व उनके साथ कथा-गोष्ठी करनेसे हानि क्रमशः -- अपराध्यैरपराधकैश्च सह गोष्ठीं न कुर्यात् ॥ १६६ ॥ A ते हि गृहप्रविष्टसर्पवत् सर्वव्यसनानामागमनद्वार ं ॥ १७० ॥ अर्थ- राजाको अपराधी व अपराध करानेवालों के साथ कथा-गोष्टी (वार्तालाप -सहवास) नहीं करनी चाहिये । सारांश यह है कि अपराध करने व करानेवाले (बैरी) उच्छू खल, छिद्राम्बेपी और भयङ्कर बैर-विरोध करनेवाले होते हैं। अतः राजाको शत्रु -कृत उपद्रवों से बचाव करनेके लिये उनके साथ कथा-गोष्टी करनेका निषेध किया गया है ॥ १६६॥ नारद' विद्वान भी कहा है कि 'जो अपने ऐश्वर्यका इच्छुक है, उसे सजा पाये हुए (बैरी) व अपराधियों के साथ कथा-गोष्ठी नहीं करनी बाहिये ॥ १॥ ' निश्चय से वे लोग - डिस व अपराधी पुरुष - गृह में प्रविष्ट हुए सर्प की तरह समस्त आपत्तियों के आने में कारण होते हैं। अर्थात् जिसप्रकार घर में घुसा हुआ सांप घातक होता है, उसीप्रकार सजा पाये हुए और अपराधी लोग भी वार्तालाप सहवासको प्राप्त हुए छिद्रान्वेषण द्वारा शत्रु श्र से मिल आते हैं; अतः राजाको अनेक कष्ट पहुंचाने में समर्थ होने से घातक होते हैं ||१७|| ५ शुक्र बिद्वान्ने भी कहा है कि 'जिसप्रकार मकानमें प्रविष्ट हुआ साँप निरन्तर भय उत्पन्न करता है, उसीप्रकार गृह-प्राप्त इण्डित व अपराधी लोगभी सदा भय पैदा करते रहते हैं ||१|| की प्रति कर्तव्य, उससे हानि व जिसका गृहमें आगमन निष्फल है, कमशः -- न कस्यापि क्रुद्धस्य पुरतस्तिष्ठेत् ॥ १७१ ॥ क्रुद्धो हि सर्प इव यमेवाग्रे पश्यति त व रोषविषमुत्सृजति ॥ १७२ ॥ अप्रतिविधातुराम मनाइरमनागमनम् ॥१७३॥ अर्थ - नैतिक पुरुषको किसी भी क्रोधी पुरुषके सामने नहीं ठहरना चाहिये | अभिप्राय यह है कि कोसे अन्धबुद्धि-युक्त पुरुष जिस किसी (निरपराधीको ) भी अपने सामने खड़ा हुआ देखता है, उसे मार डालता है, इसलिये उसके सामने ठहरनेका निषेध किया गया है ॥ १७१ ॥ A अपरापराधर्केश्व सहवासं न कुर्यात् इसप्रकार सु० व ६० लि० सू० प्रतियों में पाठ है, परन्तु अर्थभे कुछ नहीं । 1 तथा च नारदः परिभूतर मरा ये च कृतो यैश्च पराभवः । न तैः सह क्रिया गोष्टीं य इच्छंद भूतिमात्मनः ॥२१॥ २ सभा शुक्रः -- यथादिर्मन्दराविष्टः करोति सततं भयं । अपराध्याः सदोषाश्च तथा तेऽपि गृहागताः ॥३॥
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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