SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मन्त्रिमा ........... ........... ........ . ............ a sanaaanter... गुरु' विद्वान्ने भी कहा है कि जैसे अन्धा पुरुष कुपित होने पर जो भी उसके सामने खड़ा रहता है, उसे मार देता है, उसीप्रकार क्रोधसे अन्धा पुरुष भी अपने सामने रहनेवाले व्यक्तिको मार देवा है, अतः उससे दूर रहना चाहिये ।।१।।' क्योंकि क्रोधी पुरुष जिस किसीको सामने देखता है, उसीके ऊपर सपके समान रोषतपी जहर फैंक देता है। अभिप्राय यह है कि जिसप्रकार सांप निरपराधीको भी इस लेता है, नसीप्रकार कोधसे अन्धा पुरुष भी निपराधीको भी मार देता है, इसलिये उसके पास नहीं जाना चाहिये ।।१२।। जो मनुष्य प्रयोजन सिद्ध करनेमें समर्थ नहीं है, उसका प्रयोजनार्थीके गृह पानेकी अपेक्षा न पाना ही उत्तम है, क्योंकि उसके निरर्थक मानेसे प्रयोजनार्थी-कार्य-सिद्धि चाहने बामेका व्यर्थ समय नष्ट होने के सिवाय कोई लाभ नहीं ।।१७३|| भारद्वाज' विद्वान्ने भी कहा है कि किसी प्रयोजन-सिद्धिके लिये बुलाया हुया मनुष्य (वैद्य. श्रादि) यदि उसकी प्रयोजनसिद्धि (रोग-निवृत्ति-आदि) नहीं कर सकता तो उसके लानेस कोई लाभ नहीं, क्योंकि वह (निरर्थक व्यक्ति) केवल प्रयोजनार्थीके समयको व्यर्थ नष्ट करता है ॥शा इति मन्त्रिसमुहेश। --x-- ५० 7 1 सा गुरु:-धान्ध कपित्तो हग्यात् यच्च धानं व्यवस्थित । कोभान्धोऽपि तथैवाय तस्मात परतत्याने १५ • च समाज' -भगवायामीनी प्रका' नर माधन । अमीनना मन म पक्षपाfmore
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy