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________________ १६८ Pilling GopasaPRAALA ---- नीतिवाक्यामृत *******4PARATE उक्त पाँचोंके क्रमशः लक्षण:-- इङ्गितमन्यथावृत्तिः || ३६ ॥ कोसादजनिताशरीनी विकार: ॥aygar पानस्त्रीसंगादिजनितो हर्षो मदः ||३८|| प्रमादो गोत्रस्खलनादिहेतुः || ३६ || अन्यथा चिकीर्षतोऽन्यथावृत्तिर्वा प्रमादः ॥ ४० ॥ निद्रान्तरितो' [निद्रितः ] ॥ ४१ ॥ अर्थ :- गुप्त अभिप्रायको अभिव्यक्त (प्रकाश) करनेवालो शरीरकी चेष्टा 'इङ्गित' है । अथवा स्वाभाविक क्रियाओं से भिन्न क्रियायोंके करनेको इङ्गित (चेना) कहते हैं ||३६|| क्रोध से होनेवाली भयंकर आकृति व प्रसन्नता से होनेवाली सौम्य प्राकृतिको 'आकार' कहते हैं । श्रथवा क्रोधसे होनेवाली मुखकी म्लानता एवं प्रसादसे होनेवालो मुखकी प्रसन्नताको 'आकार' कहते 1134 11 मद्यपान व स्त्रीसंभोगसे होनेवाले हर्षको 'मद' कहते हैं ।। ३८ । अपने या दूसरोंके नामको भूल जाना या उसका अन्यथा कहना आदि में कारण असावधानी को 'प्रभाव' कहते हैं ॥ ३६ ॥ इसी प्रकार करनेयोग्य इच्छित कार्यको छोड़कर दूसरे कार्यको करने लगना ऐसी असावधानतारूप प्रवृत्ति को भी 'प्रमाद' कहा गया है । ४० ॥ गाढ़ नीद में व्याप्त होनेको 'निद्रा' कहा है ॥ ४१ ॥ भावार्थ::- उक्त पांच बातें गुप्त मंत्रको प्रकाशित करती हैं । उदाहरणार्थ::- जब मंत्रणा करते समय राजा आदि अपने सुखादिकी विज्ञातोय (गुप्त अभिप्राथ को प्रकट करनेवाली) चेष्टा बनाते हैं, उससे गुप्तचर उनके अभिप्रायको जान लेते हैं। इसीप्रकार क्रोध से उत्पन्न होनेवाली भयंकर आकृति और शान्तिसे होनेवाली सौम्य आकृतिको देखकर गुप्सचर जान लेते हैं, कि राजाकी भयंकर आकृति 'विग्रह' को और सौम्य प्राकृति 'संधि' को बता रही है। इसी प्रकार शराब पीना, आदि 'प्रसाद' और निद्रा आदि भी गुप्त रहस्यको प्रकाशित करने वाले हैं, अतएब इनको छोड़ देना चाहिये || ३६-४१ ॥ 1 यह सूत्र मु०३०लि० मूल प्रतियों में नहीं है किंतु सं० टी० पुस्तक में होने से संकलन किया गया है और वह भी अधूरा था, जिसे पूर्ण कर दिया गया है । संपादक:--- I विमर्श: संभवत: 'निंद्रा' प्रसिद्ध होनेसे श्राचार्यश्रीने उसका पृथक लगा-निर्देश करना उचित न समझा हो । टीकाकारने कम प्राप्त होनेसे उसका किया है । तितो इसमें यदि 'नितिः' दिखा 'इन' श्ययान्त और होता तो विशेष उत्तम थर । संसदक : I
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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